Sunday, March 17, 2019

बाद मुद्दत जो आज इतवार मिला


खोया हुआ एक झुमका मिला
जो जोड़े से बिछड़ कर उदास था कबसे

पीले दुपट्टे पर टंके सुनहरे घुँघरू मिले
जो तुमने तोड़ दिए थे यह कहकर
कि तुम्हारी आवाज ही है घुंघरुओं सी
दुपटट्टे में घुंघरू बेवजह ही तो हैं

बांस की वो पत्ती मिली
जो तुमने टांक दी थी जूड़े में
और मन बांसवारी हो उठा था

रूमाल में बंधा वो मौसम मिला
जिसमें भीगकर सूखते हुए हमने
देर तक देखा था बादलों का खेल

उदास रातों की नमी मिली
जिन्दगी में तुम्हारी कमी मिली

घर की सफाई में कुछ सामान मिला
बाद मुद्दत जो आज इतवार मिला.

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 19 मार्च 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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