तुम भी, अरे तुम भी
अम्मा तुम भी, ताई तुम भी
मौसी तुम भी, चाची तुम भी
बहना तुम भी, सासू माँ तुम भी
देवरानी प्यारी तुम भी
जेठानी हमारी तुम भी
जरा अपना हाथ देना.
मैडम जी आप भी देना तो जरा
अरी कमला, विमला तुम भी
घर के काम छोड़ो न कुछ देर को
बस जरा तुम अपना हाथ देना
ओ नन्ही गुड़िया तुम भी दो न अपना हाथ
मैडम एमएलए जी,
एनजीओ वाली मैडम/दीदी
बाद में बताना समाज कैसे बदलेगा वाली बात
अभी अपना हाथ दो न जरा.
कलक्टर मैडम आप भी
अरी ओ छोरियों
ब्वायफ्रेंड से लड़ लेना बाद में
अभी तो जरा आपना हाथ देना
ओह,सुनीता दर्द में हो तुम बहुत
तो हम आयेंगे तुम्हारे हाथ में अपना हाथ देने
आँखों में भरे हैं तुम्हारे आंसू
तो उन्हें उठाएंगे अपनी पलकों पर
बस कि तुम्हारी हथेलियों का
हमारी हथेलियों में होना जरूरी है इस वक़्त
कोई बहुत बड़ी लड़ाई नहीं है ये
एक दूसरे की हथेलियों में हथेलियाँ देकर
महसूस करना है अपनी ताकत
यह साथ में होना
है हमारे होने की बात
अपने ख्वाबों को एक-दूसरे की हथेलियों में
सुरक्षित रख लेने की बात
ईश्वर तो एक बहाना है
असल में तो खुद को पाना है...
#सबरीमाला
हाथ हमारा भी है साथ। आमीन।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 12/01/2019 की बुलेटिन, " १५६ वीं जयंती पर स्वामी विवेकानन्द जी को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (14-01-2019) को "उड़ती हुई पतंग" (चर्चा अंक-3216) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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लोहड़ीःमकरक संक्रान्ति (उत्तरायणी) की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब ...
ReplyDeleteसब अपने हाथ साझा करें तो हर बात आसान हो जाती है ...
बहुत प्रभावी रचना ...