खुद के लिए लम्हे चुराउंगी
बनूँगी थोड़ी और मुंहफट
जिंदगी को गले लगाकर खिलखिलाऊँगी
करुँगी खूब सारी यात्राएं
दोस्तों से और करुँगी झगड़े
बिखरे हुए घर को मुंह चिढ़ाऊंगी
नींदों से ख्वाब चुरा लूंगी
समंदर किनारे दौड़ लगाउंगी
नदी की बीच में धार में खड़े होकर
पुकारूंगी तुम्हारा नाम
इस बरस...
और सचमुच किया यही सब. मुन्नार की यात्रा से शुरू हुआ नए कैलेंडर का सफर तो कोच्चि के समन्दर से होते हुए गोवा के समन्दर तक ले गया. दोस्ती ने नये मुकाम हासिल किये, खोलीं कुछ और गिरहें जो अवचेतन में पैबस्त थीं कहीं. बरसों एक टुकड़ा नींद को तरसी आँखों पर नींद की रहमत हुई. कुछ दोस्तों के पास न पहुँच पाने का अफ़सोस है कि उन्हें मेरी जरूरत थी, या मुझे होना था उनके मुश्किल वक़्त में. फिर भी मन रहा उन दोस्तों के पास ही. इस बार के कैलेंडर पर कोई इंतजार नहीं लिख रही, सिर्फ बहार लिख रही हूँ. कुछ जंगल, कुछ नदियाँ लिख रही हूँ, ढेर सारा प्यार थोड़ी सी तकरार लिख रही हूँ. बहुत सारी नींद लिख रही हूँ बस कि अब मुझे नींद आने भी लगी है. जिसने कहा था कि ये साल अच्छा है वो बरहमन तो नहीं था...लेकिन यकीनन अच्छा था ये साल...
नये साल कि ढेर सारी शुभकामनाऐ
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