'किसने' उज्ज्वला ने पूछा।
'विकान्त दा ने.'
'वो कहाँ मिले?' उज्ज्वला आश्चर्य से रोमांचित हो उठी थी.
'कहीं मिले नहीं लेकिन उनसे जो सीखा। वही मेरा करियर बना. विकान्त दा की बातें याद करती थी तो बड़ी ऊर्जा मिलती थी. तुम यकीन नहीं मानोगी उज्ज, रोजमर्रा की बातचीत के दौरान कही गयी उनकी उन बातों से मैं हमेशा प्रेरित होती रही जिन पर हम उन दिनों बहुत ध्यान नहीं देते थे.'
उज्ज्वला बरसों पुराने वक़्त के उन टुकड़ों को फिर से जीने लगी थी. उसकी आँखों में वही पुरानी तस्वीरें उभरने लगी थी. उसकी आँखें में वही पुरानी तस्वीरें उभरने लगी थी. वही कालेज का जमाना, वही दोस्त, वही फटकार लगाते विक्रांत दा.
'विकांत दा हमेशा कहते थे न कि खुद को जिन्दा रखते हुए जीना ही असल जीना है. लेकिन उज्ज्वला तब हमने कभी सोचा था कि विकान्त दा कितनी महत्वपूर्ण बात कह रहे हैं. जब जिंदगी से सामना हुआ तब लगा कि सचमुच बहुत मुश्किल है अपनी तमाम ऊर्जा और महत्वाकांक्षाओं को बरकरार रखते हुए, खुद को जिन्दा रखते हुए जीना. खासकर औरतों के लिए तो और भी मुश्किल है. सिर्फ कुछ समझौतों को साँसों के बल पर धकेलने जाने की नियति अगर स्वीकार नहीं तो राह में अड़चनें ही अड़चनें हैं.'
'लेकिन सुषमा, एक-दूसरे को समझना, एक दूसरे की पसंद-नापसंद का सम्मान करना अगर समझौता है तो मैं इसे गलत नहीं मानती. जीवन की मिठास बनाये रखने के लिए व्यक्तित्व की इतनी लचक तो लाज़िमी है.'
'तुम ठीक कह रही हो उज्ज्वला लेकिन हर बार समीकरण मनचाहे नहीं होते. अपने जीवन की मिठास निचोड़-निचोड़ कर जब तक भेंट करते रहो, तुम आदर्श स्त्री हो. लेकिन अगर एक बार अपने जीवन में भी थोड़ी सी मिठास, थोड़ी सी खुली हवा, मुठ्ठी भर आकाश की तमन्ना ने कहीं जन्म ले लिया तो?
'तो क्या? उज्ज्वला का सुषमा से असहमति का स्वर सुषमा भी महसूस कर रही थी,
'कुछ नहीं' सुषमा टालते हुए रसोई की ओर बढ़ी.
'देख सुषमा, बुरा मत मानना लेकिन पति को कोई दूसरा समझना तो ठीक नहीं है न. जब तक पति-पत्नी एक-दूसरे में खुद को नहीं देखते, वह रिश्ता तो कमजोर होगा ही.'
सुषमा हौले से मुस्कुरा दी. सुषमा को उज्ज्वला की बातों से कोई हैरानी नहीं हो रही थी. घर गृहस्थी में रमी अपने ही घर को 'दुनिया' मानने वाली ऐसी कितनी ही औरतों से मिल चुकी है सुषमा। 'समर्पण का सुख' जीते जीते 'सुख' का दायरा सिमट चुका होता इनका।
'तुम इतनी चुप क्यों हो गयी सुषमा। मेरी बात का बुरा तो नहीं माना। उज्ज्वला ने आटा गूंथना शुरू कर दिया था.
सुषमा मुस्कुराई। 'पगली है क्या, तेरी बात का क्या बुरा मानना?'
'फिर तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही? सुषमा की ख़ामोशी उज्ज्वला को बेचैन किये थी. 'देख सुषमा, तेरा अनुभव मेरे अनुभव से अलग है तो जाहिर है कुछ मतभेद तो होगा ही.
''अरे भई क्या आज खाना-वाना नहीं मिलेगा.'' प्रणय का स्वर ड्राइंगरूम से चलकर किचन तक आ पहुंचा था. उज्ज्वला के हाथों की गति बढ़ गयी. सुषमा उसकी मदद करने लगी.
बड़ी ख़ामोशी से खाना पेट तक पहुँचता रहा. कभी-कभी वक़्त चीज़ों को कैसे उलझा देता है. अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठे तीन लोग. तीनों ही एक-दूसरे में प्रवेश करने की कोशिश में. लेकिन इस कोशिश में प्रणय सिरे से नाकामयाब रहा.
सुषमा के पास उज्ज्वला के सारे सवालों के जवाब हैं लेकिन सुषमा ने ख़ामोशी अख्तियार करना उचित समझा. तर्क, सवाल और उलझनों के भंवर में उज्ज्वला सुषमा के सवालों का सामना नहीं कर पायेगी. उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं होगा कि अपने भीतर अभिनय की आंदोलित होती तरंगों को क्यों रोका उसने? रात दिन कुछ नया करने की फ़िराक में रहने वाली उज्ज्वला कहाँ खो गयी आखिर? और कैसे भूल गयी वो कॉलेज की बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड. उन दिनों उज्ज्वला का सिक्का चलता था कॉलेज में. जिसे देखो उज्ज्वला के पीछे भागता फिरता था. टीचर्स तक फैन थे उसके और अब यह सब गुजरे वक़्त का एक पन्ना, शोकेस में सजी एक शील्ड और एल्बम में लगी एक फोटो से अधिक कुछ नहीं. सुषमा निश्चय कर चुकी है कि वह उज्ज्वला से ऐसी कोई बात नहीं कहेगी. वह उज्ज्वल को किसी पसोपेश में नहीं डालना चाहती.
(जारी )
दूसरी किश्त का इन्तजार करना पड़ा। निरन्तरता बनी हुई है। कुछ जगह विकान्त टाईप हो गया है। अगली किश्त जल्दी आये तो अच्छा रहेगा।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-12-2018) को "उभरेगी नई तस्वीर " (चर्चा अंक-3181) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी