यह फिल्म मैंने हाल ही में देखी और यकीन मानिए इसका जादू उतरा नहीं अब तक. माजिद मज़ीदी की फिल्म कुछ ज्यादा ही उम्मीद से न देखी जाय ऐसा न होना नामुमकिन है. चिल्ड्रेन ऑफ हेवेन का असर तारी होने लगता है फिल्म देखने से पहले हालाँकि किसी भी फ़िल्मकार के लिए यह अच्छी बात नहीं कि इस तरह वो उम्मीद के बोझ से दब जाता है लेकिन बात अगर मज़ीदी की हो तो वो कितनी भी उम्मीदों को पंखों की तरह हल्का बनाना जानते हैं बोझ नहीं बनने देते. यह फिल्म फ्रेम दर फ्रेम बांधती है. मज़ीदी का निर्देशन अनिल मेहता का कैमरा और रहमान का संगीत इसे खूबसूरत अनुभव में ढालते हैं. इस फिल्म का जौनर डिसाइड करना थोड़ा मुश्किल है. इशान खट्टर की यह पहली फिल्म है लेकिन उन्हें देखकर कतई नहीं लगता कि यह उनकी पहली फिल्म है. उनकी आँखें वादा भरी आँखें हैं कि निराश नहीं करूँगा. यह वादा उन्होंने हाल में रिलीज धड़क में बखूबी निभाया. बहन की भूमिका में मालविका ने भी बहुत अच्छा काम किया.
मुम्बईया भाईगिरी, लड़ाई, झगड़ा, भागमभाग, हिंसा के बीच फिल्म किस कदर नरम मुलायम है यह इसे देखकर ही जाना जा सकता है. यह कहानी एक भाई और बहन की है. बड़ी बहन को रोज पति से पिटते देखते और खुद भी अपने बहन के पति से बेइंतहा पिटता वो नन्हा भाई एक दिन घर से भाग जाता है और बड़ा होकर ड्रग्स माफियाओं के साथ काम करने लगता है. हालाँकि इस सबके पीछे उसके मन में एक सुंदर जिन्दगी का सपना है. मन में बहन के लिए नाराजगी है जो जल्दी ही खत्म हो जाती है. नाटकीय मोड़ों से गुजरती फिल्म में बहन का जेल जाना, वहां दूसरी महिला कैदी के बच्चे से उसकी दोस्ती होना एक अलग ही मुकाम पर ले जाता है फिल्म को. मासूम से कुछ धागे देह पर तैरते महसूस होते हैं. इधर भाई बहन के साथ बलात्कार करने वाले के बच्चों के साथ है और उनके मोह में बंधने लगता है. मज़ीदी ने छायाओं और संगीत के साथ मासूम मुस्कुराहटों का खूबसूरत कोलाज रचा है. बादलों के पार सपनों की जो गठरी है उसका रास्ता दिखाया है. यह फिल्म साथ रह जाने वाली फिल्मों में से एक है. मुझे इस फिल्म में बच्चों के साथ फिल्माए दृश्य, दीवार का पेंटिंग में तब्दील होना, छायाओं में कहानियां बनना बेहद खूबसूरत लगा. और यह भी कि बचपन हर हाल में बचपन है उसे मुस्कुराने का पूरा हक है.
देखनी पड़ेगी।
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