Tuesday, July 10, 2018

यही तो है मौसम


जिन्दगी की तमाम आपाधापियों के बीच कोई दोस्त किसी दूर के शहर में होकर भी आपके जीवन की नमी को सहेज देता है, उम्मीद को टूटने से बचा लेता है. इन बॉक्स में कुछ इस तरह खिलती हैं उम्मीदें बिना किसी संवाद के. हमें अभी होना सीखना है कि किसी की जिन्दगी में कैसे हुआ जाता है, कैसे रहा जाता है और किस तरह जिंदगी को मानीखेज बनाया जाता है...

बादलों का नाम न हो,
अम्बर के गाँवों में 
जलता हो जँगल 
खुद अपनी छाँव में 
यही तो है मौसम 

तुम और हम 
बादलों के नग़में गुनगुनाएं 
थोड़ा सा रूमानी हो जाएं
मुश्किल है जीना 
उम्मीद के बिना 
थोड़े से सपने सजाएं 
थोड़ा सा रूमानी हो जाएं 

रास्ता अकेला हो, 
हर तरफ़ अंधेरा हो 
रात भी हो घात की, 
दिन भी लुटेरा हो 
यही तो है मौसम 
आओ तुम और हम 
हम दर्द को बाँसुरी बनाएं 
थोड़ा सा रूमानी हो जाएं...
(फिल्म थोड़ा सा रूमानी हो जायें)

https://www.youtube.com/watch?v=_C6WzQkKbys

5 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 12 जुलाई 2018 को प्रकाशनार्थ 1091 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  2. https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/07/blog-post_11.html

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  3. बहुत सुंदर भावों का संगम।

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  4. बहुत ही सुन्दर.....

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