हेम पन्त रचनात्मक ऊर्जा से भरे उन युवाओं में से हैं जो अपने हर लम्हे को भरपूर जीने में और उस जिए से समाज को जोड़ने में यकीन करते हैं. पेशे से इंजीनियर हेम क्रिएटिव उत्तराखंड मंच से शुरुआत से जुड़े हैं. उन्होंने पढ़ने लिखने की संस्कृति के विकास के लिए एक सृजन पुस्तकालय बनाया है. वो 'क' से कविता से जुड़े हैं. थियेटर करते हैं. घुम्म्क्कड़ी, संगीत, साहित्य पढ़ने में खूब रूचि रखते हैं और हर काम में कुछ नया करने को बेताब रहते हैं. पिछले दिनों वो नेपाल यात्रा पर गए तो उन्होंने 'प्रतिभा की दुनिया' के लिए कुछ संस्मरण लिखे।आइये पढ़ते हैं उनके संस्मरण- प्रतिभा
प्राकृतिक विविधता और हर तरह के पर्यटक के अनुसार मनोरंजन साधनों के कारण नेपाल फिर से तेजी के साथ घुमक्कड़ों की पसन्द बनता जा रहा है। सीमा पार करने की सुगम सुविधाओं के कारण भारत से हर साल भारी संख्या में लोग नेपाल घूमने जाते हैं। लम्बे समय तक राजनैतिक अस्थिरता के बाद अब उथल-पुथल रुक गई है, संविधान का निर्माण हो चुका है और अब नेपाल के लोगों को उम्मीद है कि देश में तेजी से विकास होगा।
पिछले दिनों साथी सुनील सोनी के साथ उनकी कार से नेपाल के दो राज्यों में घूमने का मौका मिला। रविवार दिन में लगभग 4 बजे रुद्रपुर से निकलने के बाद हम दोनों लोग बनबसा (गड्डाचौकी) बोर्डर से होते हुए उसी शाम 7 बजे महेन्द्रनगर पहुंचे। अब रुद्रपुर से बनबसा तक सड़क की स्थिति बहुत अच्छी है। नेपाल की सीमा में प्रवेश करने के बाद कार का शुल्क (लगभग 300 भारतीय रुपये प्रतिदिन) देकर आसानी से रोड परमिट बन जाता है। हम लोगों का रात का विश्राम धनगढ़ी में था। महेन्द्रनगर से धनगढ़ी तक शुक्लाफांटा नेशनल पार्क के बीच से गुजरते हुए बहुत ही सुगम सड़क है। नेपाल में हर जगह सड़कों का काम बहुत तेजी से हो रहा है।
रात लगभग 9.30 बजे हम लोग धनगढ़ी शहर पहुंचे जहाँ हमारे मेजबान श्री केदार भट्ट जी हमारा बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। मूल रूप से पिथौरागढ़ के निवासी श्री केदार भट्ट धनगढ़ी शहर के प्रतिष्ठित शिक्षक हैं। लगभग 40 साल से नेपाल में रहते हुए उन्होंने शहर में विज्ञान शिक्षक के रूप में बहुत नाम कमाया है, अभी भी धनगढ़ी में कई स्कूलों के साथ जुड़कर शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। श्रीमती भट्ट भी योग प्रशिक्षण के माध्यम से लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक कर रही हैं।
नेपाल में संविधान निर्माण के बाद 7 राज्यों का निर्माण किया गया है और अब वहां भारत की तरह ही त्रिस्तरीय शासन व्यवस्था स्थापित हो चुकी है। धनगढ़ी शहर को राज्य-7 की राजधानी बनाया गया है। यह एक तेजी से उभरता हुआ शहर है। शहर के आसपास ही भारतीय मूल के लोगों द्वारा संचालित कृषि आधारित औद्योगिक प्रतिष्ठान भी हैं। सड़कों के चौड़ीकरण का काम चल रहा है और बाजार-दुकानों में आधुनिकता की झलक दिखाई देने लगी है। एक अच्छी बात ये भी है कि नेपाल में अधिकांश दुकानें महिलाओं द्वारा चलाई जाती हैं। धनगढ़ी में कई उच्चस्तरीय पेशेवर शैक्षिक संस्थान भी हैं। यहां नॉर्वे की सहायता से स्थापित चेरिटेबल 'गेटा नेत्र अस्पताल' में आधुनिक मशीनों की मदद से सस्ती चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है। इस अस्पताल में यूपी-बिहार की तरफ से भी लोग आंखों के ऑपरेशन करवाने आते हैं। दिनभर धनगढ़ी घूमने के बाद अगले दिन हमने नेपालगंज जाने का विचार बनाया।
अगली सुबह 6 बजे हम दोनों लोग कार से नेपालगंज शहर की तरफ निकले जो धनगढ़ी से लगभग 200 किमी दूर है। इस रास्ते पर लगभग 20 साल पहले भारत ले सहयोग से 22 पुलों का निर्माण किया गया है। सड़क बहुत ही अच्छी है। एक पहाड़ी श्रृंखला अधिकांश रास्ते में सड़क के समानांतर चलती है। सड़क के किनारे हरियाली भरे खेत, छोटे कस्बे और ग्रामीण जीवन के खूबसूरत नजारे दिखते हैं। जगह जगह धान की रोपाई लगाते हुए नेपाल के लोग पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर और खुशहाल नजर आते हैं। बीच रास्ते में 'घोड़ा-घोड़ी ताल' नामक एक सरोवर है जहां खूब कमल के फूल खिलते हैं। आगे जाकर चिसापानी नामक स्थान पर 'करनाली नदी' के ऊपर जापान के सहयोग से एक भव्य पुल बना हुआ है। इस पुल को पार करते ही 'बर्दिया नेशनल पार्क' का इलाका शुरू हो जाता है।
नेपाल में सभी संरक्षित वनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सेना के हाथों में है। 'बर्दिया नेशनल पार्क' के बीच से गुजरती हुई शानदार सड़क पर भी सेना लगातार गश्त करती है। इस सड़क से गुजरते हुए कहीं भी रुकने की मनाही है। गाड़ी से प्लास्टिक या अन्य गन्दगी फेंकने पर भारी जुर्माना लगता है। 'बर्दिया नेशनल पार्क' के बीच से गुजरने वाले East-West National Highway पर वाहनों से होने वाली दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए एक अनूठा तरीका है। 'बर्दिया नेशनल पार्क' में प्रवेश करते ही वनचौकी पर रुककर वाहन का टाइम कार्ड बनता है। एक चौकी से दूसरी चौकी की दूरी के बीच 40किमी/घण्टा की स्पीड से दूरी तय करनी होती है। 13किमी दूरी के लिए लगभग 20-22 मिनट तय है। रास्ते मे कहीं भी गाड़ी रोकने की अनुमति नहीं है। जल्दी पहुंचने का मतलब है कि आपने गाड़ी तेजी से चलाई है और देरी से पहुंचने का मतलब आप रास्ते में कहीं रुके थे। दोनों स्थितियों में जुर्माना हो सकता है। जंगल से बाहर निकलते समय सेना द्वारा गाड़ी की एक बार फिर से अच्छी तरह जांच की जाती है। गाड़ी से जंगली जानवर को चोट पहुंचाने पर 6 महीने की सजा और एक लाख नेपाली रुपये जुर्माना।
नेपाल में ज्यादातर लोग बस-मैटाडोर से सफर करते हैं। रोड पर ट्रैफिक बहुत ज्यादा नहीं है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि 200% कस्टम ड्यूटी के कारण कार और बाइक बहुत महंगी हैं। भारत में जो कार ₹5 लाख की है वो नेपाल में ₹15 लाख में आएगी (लगभग 23-24 लाख नेपाली रुपये) बड़े और मध्यम स्तर के शहरों के बीच Air Connectivity भी बहुत अच्छी है। सड़कों की स्थिति ठीकठाक है और भारतीय गाड़ियों के लिए बहुत सुगमता है। हमारे साथी मुकेश पांडे और उमेश पुजारी पिछले साल इसी रास्ते बाइक पर पूरा नेपाल लांघते हुए भूटान तक गए थे।
भारत के लोगों के साथ नेपाल के निवासी बहुत मित्रवत व्यवहार करते हैं। भाषा सम्बन्धी कोई खास समस्या भी नहीं होती। अकेले घूमने के शौकीन लोगों के लिए नेपाल में कई सुविधाएं उपलब्ध हैं और पारिवारिक भ्रमण के लिए भी नेपाल एक सुरक्षित स्थान है।
तो अगर आप दुनिया घूमने का शौक का शौक रखते हैं तो नेेेपाल से शुरुआत कीजिए, बिना पासपोर्ट और वीजा
नेपाल का एक दृश्य |
एक दृश्य जहाँ हम ठहरे गये |
प्राकृतिक विविधता और हर तरह के पर्यटक के अनुसार मनोरंजन साधनों के कारण नेपाल फिर से तेजी के साथ घुमक्कड़ों की पसन्द बनता जा रहा है। सीमा पार करने की सुगम सुविधाओं के कारण भारत से हर साल भारी संख्या में लोग नेपाल घूमने जाते हैं। लम्बे समय तक राजनैतिक अस्थिरता के बाद अब उथल-पुथल रुक गई है, संविधान का निर्माण हो चुका है और अब नेपाल के लोगों को उम्मीद है कि देश में तेजी से विकास होगा।
पिछले दिनों साथी सुनील सोनी के साथ उनकी कार से नेपाल के दो राज्यों में घूमने का मौका मिला। रविवार दिन में लगभग 4 बजे रुद्रपुर से निकलने के बाद हम दोनों लोग बनबसा (गड्डाचौकी) बोर्डर से होते हुए उसी शाम 7 बजे महेन्द्रनगर पहुंचे। अब रुद्रपुर से बनबसा तक सड़क की स्थिति बहुत अच्छी है। नेपाल की सीमा में प्रवेश करने के बाद कार का शुल्क (लगभग 300 भारतीय रुपये प्रतिदिन) देकर आसानी से रोड परमिट बन जाता है। हम लोगों का रात का विश्राम धनगढ़ी में था। महेन्द्रनगर से धनगढ़ी तक शुक्लाफांटा नेशनल पार्क के बीच से गुजरते हुए बहुत ही सुगम सड़क है। नेपाल में हर जगह सड़कों का काम बहुत तेजी से हो रहा है।
रात लगभग 9.30 बजे हम लोग धनगढ़ी शहर पहुंचे जहाँ हमारे मेजबान श्री केदार भट्ट जी हमारा बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। मूल रूप से पिथौरागढ़ के निवासी श्री केदार भट्ट धनगढ़ी शहर के प्रतिष्ठित शिक्षक हैं। लगभग 40 साल से नेपाल में रहते हुए उन्होंने शहर में विज्ञान शिक्षक के रूप में बहुत नाम कमाया है, अभी भी धनगढ़ी में कई स्कूलों के साथ जुड़कर शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। श्रीमती भट्ट भी योग प्रशिक्षण के माध्यम से लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक कर रही हैं।
नेपाल में संविधान निर्माण के बाद 7 राज्यों का निर्माण किया गया है और अब वहां भारत की तरह ही त्रिस्तरीय शासन व्यवस्था स्थापित हो चुकी है। धनगढ़ी शहर को राज्य-7 की राजधानी बनाया गया है। यह एक तेजी से उभरता हुआ शहर है। शहर के आसपास ही भारतीय मूल के लोगों द्वारा संचालित कृषि आधारित औद्योगिक प्रतिष्ठान भी हैं। सड़कों के चौड़ीकरण का काम चल रहा है और बाजार-दुकानों में आधुनिकता की झलक दिखाई देने लगी है। एक अच्छी बात ये भी है कि नेपाल में अधिकांश दुकानें महिलाओं द्वारा चलाई जाती हैं। धनगढ़ी में कई उच्चस्तरीय पेशेवर शैक्षिक संस्थान भी हैं। यहां नॉर्वे की सहायता से स्थापित चेरिटेबल 'गेटा नेत्र अस्पताल' में आधुनिक मशीनों की मदद से सस्ती चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है। इस अस्पताल में यूपी-बिहार की तरफ से भी लोग आंखों के ऑपरेशन करवाने आते हैं। दिनभर धनगढ़ी घूमने के बाद अगले दिन हमने नेपालगंज जाने का विचार बनाया।
अगली सुबह 6 बजे हम दोनों लोग कार से नेपालगंज शहर की तरफ निकले जो धनगढ़ी से लगभग 200 किमी दूर है। इस रास्ते पर लगभग 20 साल पहले भारत ले सहयोग से 22 पुलों का निर्माण किया गया है। सड़क बहुत ही अच्छी है। एक पहाड़ी श्रृंखला अधिकांश रास्ते में सड़क के समानांतर चलती है। सड़क के किनारे हरियाली भरे खेत, छोटे कस्बे और ग्रामीण जीवन के खूबसूरत नजारे दिखते हैं। जगह जगह धान की रोपाई लगाते हुए नेपाल के लोग पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर और खुशहाल नजर आते हैं। बीच रास्ते में 'घोड़ा-घोड़ी ताल' नामक एक सरोवर है जहां खूब कमल के फूल खिलते हैं। आगे जाकर चिसापानी नामक स्थान पर 'करनाली नदी' के ऊपर जापान के सहयोग से एक भव्य पुल बना हुआ है। इस पुल को पार करते ही 'बर्दिया नेशनल पार्क' का इलाका शुरू हो जाता है।
नेपाल में सभी संरक्षित वनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सेना के हाथों में है। 'बर्दिया नेशनल पार्क' के बीच से गुजरती हुई शानदार सड़क पर भी सेना लगातार गश्त करती है। इस सड़क से गुजरते हुए कहीं भी रुकने की मनाही है। गाड़ी से प्लास्टिक या अन्य गन्दगी फेंकने पर भारी जुर्माना लगता है। 'बर्दिया नेशनल पार्क' के बीच से गुजरने वाले East-West National Highway पर वाहनों से होने वाली दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए एक अनूठा तरीका है। 'बर्दिया नेशनल पार्क' में प्रवेश करते ही वनचौकी पर रुककर वाहन का टाइम कार्ड बनता है। एक चौकी से दूसरी चौकी की दूरी के बीच 40किमी/घण्टा की स्पीड से दूरी तय करनी होती है। 13किमी दूरी के लिए लगभग 20-22 मिनट तय है। रास्ते मे कहीं भी गाड़ी रोकने की अनुमति नहीं है। जल्दी पहुंचने का मतलब है कि आपने गाड़ी तेजी से चलाई है और देरी से पहुंचने का मतलब आप रास्ते में कहीं रुके थे। दोनों स्थितियों में जुर्माना हो सकता है। जंगल से बाहर निकलते समय सेना द्वारा गाड़ी की एक बार फिर से अच्छी तरह जांच की जाती है। गाड़ी से जंगली जानवर को चोट पहुंचाने पर 6 महीने की सजा और एक लाख नेपाली रुपये जुर्माना।
नेपाल में ज्यादातर लोग बस-मैटाडोर से सफर करते हैं। रोड पर ट्रैफिक बहुत ज्यादा नहीं है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि 200% कस्टम ड्यूटी के कारण कार और बाइक बहुत महंगी हैं। भारत में जो कार ₹5 लाख की है वो नेपाल में ₹15 लाख में आएगी (लगभग 23-24 लाख नेपाली रुपये) बड़े और मध्यम स्तर के शहरों के बीच Air Connectivity भी बहुत अच्छी है। सड़कों की स्थिति ठीकठाक है और भारतीय गाड़ियों के लिए बहुत सुगमता है। हमारे साथी मुकेश पांडे और उमेश पुजारी पिछले साल इसी रास्ते बाइक पर पूरा नेपाल लांघते हुए भूटान तक गए थे।
भारत के लोगों के साथ नेपाल के निवासी बहुत मित्रवत व्यवहार करते हैं। भाषा सम्बन्धी कोई खास समस्या भी नहीं होती। अकेले घूमने के शौकीन लोगों के लिए नेपाल में कई सुविधाएं उपलब्ध हैं और पारिवारिक भ्रमण के लिए भी नेपाल एक सुरक्षित स्थान है।
तो अगर आप दुनिया घूमने का शौक का शौक रखते हैं तो नेेेपाल से शुरुआत कीजिए, बिना पासपोर्ट और वीजा
शुभकामनाएं हेम जी के लिये उर्जा बनी रहे। सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deletehttps://bulletinofblog.blogspot.com/2018/07/blog-post_15.html
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2018) को "हरेला उत्तराखण्ड का प्रमुख त्यौहार" (चर्चा अंक-3035) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर लेख पंत जी नेपाल की बेहतरीन जानकारियों के साथ।लिखते रहें
ReplyDeleteपिछली बार पुजारी जी व पांडे जी ने भी रोचक जानकारियां साझा की थी।