अन्याय होगा तो प्रतिरोध भी होगा
प्रतिरोध का अपना ढब भी होगा
शोर भी मचेगा
निकलेगा जुलूस भी
प्रतिरोध का अपना ढब भी होगा
शोर भी मचेगा
निकलेगा जुलूस भी
जब शामिल होना उस प्रतिरोध में
अन्याय के खिलाफ मच रहे प्रतिकार के शोर में
लिखत-पढ़त में
जब थामना मशाल या मोमबत्ती
और बढ़ना आगे जुलूस में
तब ध्यान रखना कि यह शामिल होना
कहीं ‘शामिल होना भर’ बनकर न रह जाय
कहीं भोंपू भर न बनकर रह जाना तुम
घटनाओं के बाद का
कहीं अपनी ही कोई क्षुधा न पूरी हो रही हो तुम्हारी
इस शोर में
अगर ऐसा है तो चुप ही रहो दोस्त
कि कोई भी प्रतिरोध सड़कों पर बाद में आता है
पहले जन्म लेता है भीतर
और यकीन मानो,
वो तुम्हें एक लम्हा भी चैन से सोने नहीं देगा
सड़कों पर भीड़ का सैलाब उतरे न उतरे
भीतर दुःख, गुस्से और प्रतिकार का
सैलाब का उतरना जरूरी है
घटनाओं का इस्तेमाल मत करो
उन्हें जज्ब करो कि कवितायेँ कोई इंस्टेंट कॉफ़ी नहीं हैं
दर्द को सहो बूँद बूँद,
और गुस्से को पालो पोसो
'प्रतिरोध' को 'बदला' मत पढ़ो
'बदलाव' पढो
आज अगर तुम्हारी नसें नहीं फड़क रहीं
तुम्हारी आत्मा ऐसे समाज का हिस्सा होने के लिए
कुछ न कर पानी बेबसी के लिए
शर्मिंदा नहीं है
तो नहीं है कोई अर्थ किसी भी बात का.
अन्याय के खिलाफ मच रहे प्रतिकार के शोर में
लिखत-पढ़त में
जब थामना मशाल या मोमबत्ती
और बढ़ना आगे जुलूस में
तब ध्यान रखना कि यह शामिल होना
कहीं ‘शामिल होना भर’ बनकर न रह जाय
कहीं भोंपू भर न बनकर रह जाना तुम
घटनाओं के बाद का
कहीं अपनी ही कोई क्षुधा न पूरी हो रही हो तुम्हारी
इस शोर में
अगर ऐसा है तो चुप ही रहो दोस्त
कि कोई भी प्रतिरोध सड़कों पर बाद में आता है
पहले जन्म लेता है भीतर
और यकीन मानो,
वो तुम्हें एक लम्हा भी चैन से सोने नहीं देगा
सड़कों पर भीड़ का सैलाब उतरे न उतरे
भीतर दुःख, गुस्से और प्रतिकार का
सैलाब का उतरना जरूरी है
घटनाओं का इस्तेमाल मत करो
उन्हें जज्ब करो कि कवितायेँ कोई इंस्टेंट कॉफ़ी नहीं हैं
दर्द को सहो बूँद बूँद,
और गुस्से को पालो पोसो
'प्रतिरोध' को 'बदला' मत पढ़ो
'बदलाव' पढो
आज अगर तुम्हारी नसें नहीं फड़क रहीं
तुम्हारी आत्मा ऐसे समाज का हिस्सा होने के लिए
कुछ न कर पानी बेबसी के लिए
शर्मिंदा नहीं है
तो नहीं है कोई अर्थ किसी भी बात का.
दर्द का नहीं होता कोई मजहब नहीं होती कोई सरहद
कम से कम अपने भीतर तो
रोका ही जा सकता है इस बंटवारे को
बचाया जा सकता है खुद को हिंसक भीड़ का हिस्सा होने से.
जहाँ उसे सुनाई नहीं देती मासूमों की चीखें
जहाँ नहीं पहुँचती अन्याय की ख़बरें
जहाँ से नहीं नज़र आता उसे
खड़ी फसल पर हुई बारिश की चोट से उभरा किसानों का दर्द
किस सुरम्य जंगल में या किसी ऊंची पहाड़ी पर
विराजमान है शान से
उस तक पहुँचने की व्यवस्थाएं हैं कितनी अलग
कि अमीरों के लिए मुहैय्या हैं वीआईपी दर्शन
और गरीबों को लगाना होता है कई घंटों तक लाइन में
कुंटलों के चढ़ावे को किस तरह लेता होगा ईश्वर
जिसमें शामिल होते हैं
बच्चों के हिस्से से चुराए कुछ कौर भी
ये कैसा ईश्वर है जिसने भर दिया है डर
कि वो पूजा, उपवास और चढ़ावों से होता है प्रसन्न
कि प्रसन्न होने का उसका वर्ग पूर्व निर्धारित है
ये कैसा ईश्वर है जो घन्टे घडियालों के शोर के नीचे
छुप जाने देता है दुःख का, पीड़ा सैलाब
वो अगरबत्ती और फूलों की खुशबू की चादर बिछ जाने देता है
बजबजाते नासूरों पर, घावों पर
कम से कम अपने भीतर तो
रोका ही जा सकता है इस बंटवारे को
बचाया जा सकता है खुद को हिंसक भीड़ का हिस्सा होने से.
ये कैसा ईश्वर है
कहाँ सोया रहता है ईश्वरजहाँ उसे सुनाई नहीं देती मासूमों की चीखें
जहाँ नहीं पहुँचती अन्याय की ख़बरें
जहाँ से नहीं नज़र आता उसे
खड़ी फसल पर हुई बारिश की चोट से उभरा किसानों का दर्द
किस सुरम्य जंगल में या किसी ऊंची पहाड़ी पर
विराजमान है शान से
उस तक पहुँचने की व्यवस्थाएं हैं कितनी अलग
कि अमीरों के लिए मुहैय्या हैं वीआईपी दर्शन
और गरीबों को लगाना होता है कई घंटों तक लाइन में
कुंटलों के चढ़ावे को किस तरह लेता होगा ईश्वर
जिसमें शामिल होते हैं
बच्चों के हिस्से से चुराए कुछ कौर भी
ये कैसा ईश्वर है जिसने भर दिया है डर
कि वो पूजा, उपवास और चढ़ावों से होता है प्रसन्न
कि प्रसन्न होने का उसका वर्ग पूर्व निर्धारित है
ये कैसा ईश्वर है जो घन्टे घडियालों के शोर के नीचे
छुप जाने देता है दुःख का, पीड़ा सैलाब
वो अगरबत्ती और फूलों की खुशबू की चादर बिछ जाने देता है
बजबजाते नासूरों पर, घावों पर
ये कैसा ईश्वर है जो हालात कैसे भी हों
करता नहीं कुछ भी, कभी भी.
करता नहीं कुछ भी, कभी भी.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-05-2018) को "सहते लू की मार" (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया
ReplyDeleteये इश्वरीय सत्ता के नाम पर व्यवसाय है और कुछ नही ये मुखोटो के अंदर का उत्पात है लालसा लोभ और यश की भुख है ।
ReplyDeleteनमन साधुवाद आपकी रचना को।
Hi there, I check your new stuff daily. Your humoristic style is awesome, keep it
ReplyDeleteup!
सुन्दर
ReplyDeleteHeya this is kinda of off topic but I was wanting to know if blogs use
ReplyDeleteWYSIWYG editors or if you have to manually code with HTML.
I'm starting a blog soon but have no coding skills
so I wanted to get guidance from someone with experience.
Any help would be enormously appreciated!
बहुत सुंदर प्रतिभा जी।
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