Tuesday, May 8, 2018

माँ


मां
वो मुस्कुराती कम है
बहुत कम
हंसती हैं कभी-कभार लेकिन
देखा नहीं कभी
मुरझाते हुए
उदास
निराश

उसे कभी प्रेम करते हुए
भी नहीं देखा
माथे पर किसी ममत्व भरे चुम्बन की
स्मृति नहीं
न याद है
हुलस के गले लगाना
न लोरी, न लाड

उसे रोते हुए भी कम ही देखा है
न देखा है शिकायत करते कभी
देखा उसे बस काम करते,
दौड़ते-भागते

जब वो परेशान हुई
तब और काम करने लगी
शिकायत हुई कोई
तो और काम
भावुकता ने रोकनी चाही कोई राह
तो और काम

मां एक मजबूत स्तम्भ है
बिना ज्यादा किताबों में सर खपाए
वो जानती है
जीवन के रहस्य
वो समझती
कि बुध्ध होना सिर्फ
आधी रात को घर छोड़ना नहीं
न जंगलों में भटकना भर

दाल  में संतुलित नमक डालना भी है 
दुनिया में प्रेम बचाए रखने सा महत्वपूर्ण काम

मां के पास
समष्टि का समूचा ज्ञान है
जल से पतला ज्ञान
मां अपने ज्ञान को
जीते हुए
धूप में बैठकर मटर छीलती है
बेवजह खुश होने पर लगाती हैं फटकार
यही होता है हमारे लिए माँ का प्यार.  

4 comments:

  1. काश देश की भी कोई माँ होती

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  2. माँ के आँचल की छांव अनमोल है !

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  3. माँ
    एक मजबूत स्तम्भ है
    बिना ज्यादा किताबों में सर खपाए
    वो जानती है
    जीवन के रहस्य
    वो समझती
    कि बुध्ध होना सिर्फ
    आधी रात को घर छोड़ना नहीं
    न जंगलों में भटकना भर
    बिल्कुल सटीक बात

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.05.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2966 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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