Sunday, December 31, 2017

इस बरस...


खुद के लिए लम्हे चुराउंगी
बनूँगी थोड़ी और मुंहफट
जिंदगी को गले लगाकर खिलखिलाऊँगी
करुँगी खूब सारी यात्राएं
दोस्तों से और करुँगी झगड़े
बिखरे हुए घर को मुंह चिढ़ाऊंगी
नींदों से ख्वाब चुरा लूंगी
समंदर किनारे दौड़ लगाउंगी
नदी की बीच में धार में खड़े होकर
पुकारूंगी तुम्हारा नाम
इस बरस...

5 comments:

  1. जाने कितना कुछ एक बार में ही सोच लेते हैं लेकिन समय क्या कहता है कोई नहीं जानता!
    बहुत अच्छी प्रस्तुति
    नववर्ष मंगलमय हो!

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  2. सुंदर रचना.... आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है

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  3. बड़े हिम्मती और बड़े गुस्ताख इरादे हैं. आप उनको अंजाम तक लाएं, यही दुआ है.

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