Thursday, June 15, 2017

इतनी भी अकेली नहीं होतीं 'अकेली औरतें'


जिम्मेदारियों से घिरी दौड़ती-भागती
खुद गिरती, खुद ही उठती
खुद रोती और खुद अपने आंसू पोछकर मुस्कुराती
अकेली औरतें
इतनी भी अकेली नहीं होतीं

उनके आसपास होती हैं
सहकर्मियों की कसी गयीं फब्तियां
मोहल्ले में होने वाली चर्चाओं में उनका जिक्र
बेवक्त, बेवजह पूछे जाने वाले बेहूदा सवाल
और हर वक्त मदद के बहाने
नजदीकी तलाशती निगाहें
अकेली औरतों को
कहाँ अकेला रहने देता है संसार

अकेली औरतों के गले में मंगलसूत्र की जगह
लोगों को लटका नजर आता है 'अवेलेबल' का बोर्ड
उनके आसपास बिछ रहा होता है
अश्लील बातों का जाल

वो लाइन में लगकर खा रही होती हैं धक्के
पंचर स्कूटर को घसीट रही होती हैं खड़ी दोपहर में
मदद को यूँ तो बिछा होता है एक साजिश का संसार
लेकिन वे अपनी खुद्दारी को करती हैं सलाम
और सीखती हैं एक नया सबक हर रोज
होती हैं थोड़ी सी और मजबूत
अकेली औरतें
इतनी भी अकेली नहीं होतीं
अकेली औरतें पिच्च से थूक देती हैं
जमाने भर का कसैलापन
ताकि भीतर की मिठास बची रहे
वो बेफिक्र गुनगुनाती हैं
जीती हैं अपने अकेलेपन को
चाहे अकेलापन उनका चुनाव हो या न हो
वो खड़ी होती हैं जिन्दगी के सामने पूरी ताकत से
अकेलेपन का उत्सव मनाती हैं
उनका हँसना और खुश रहना
चुनौती लगता है समाज को
वो हर रोज़ खड़ी करता है नई मुश्किलें उनके लिए

विवाहितायें, विवाहित होने की गौरव गाथाएं
उन्हें सुनाते हुए इतराती हैं बार-बार
लेकिन अनायास उभर आई अपनी अकेलेपन की
पीड़ा छुपाने में नाकामयाब भी होती हैं
अकेली औरतें मुस्कुराकर देखती हैं
पित्रसत्तता की लम्बी उम्र की कामनाओं
में डूबी स्त्रियों के मासूम अहंकार को
अपने अकेलेपन को अपनी शामों को घोलते हुए
वो जीती हैं कुछ मुक्कमल लम्हे
सहेजती हैं अपना कीमती अकेलापन
अकेली औरतें
इतनी भी अकेली नहीं होतीं...

7 comments:

  1. सार्थक और सटीक रचना

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  2. सदैव याद रहने वाली कविता !

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  3. सदैव याद रहने वाली कविता !

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  4. इतनी भी अकेली नहीं होतीं 'अकेली औरतें'......वाह .. समाज की विकृत सोच की एक्स-रे रिपोर्ट है।

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  5. बहुत प्रभावी ... सत्य के करीब लिखी रचना ...

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