Friday, March 17, 2017

ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर...


आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो

जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो
संदल से महकती हुई पुर-कैफ़ हवा का
झोंका कोई टकराए तो लगता है कि तुम हो

ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
नद्दी कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो

जब रात गए कोई किरन मेरे बराबर
चुप-चाप सी सो जाए तो लगता है कि तुम हो...

- जां निसार अख्तर

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 22 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
    नद्दी कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो
    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ।

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  4. अति सुन्दर कविता।

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