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ख्वाहिश १३ बरस की हैऔर घुम्मकड़ी की शौक़ीन है. कब वो चुपके-चुपके अपनी डायरियों में अपने अनुभव लिखने लगी मुझे पता नहीं. पहली बार दो बरस पहले उसने खुद बताया था कि वो डायरी लिखती है लेकिन चाहती है उसकी डायरी कोई न पढ़े. जाहिर है मेरी जिम्मेदारी उसकी इस प्राइवेसी को बचाने की भी हो गयी. उसकी डायरियां भरने लगीं. मैंने यह ज़रूर महसूस किया कि उसे डायरी में एक बेस्ट फ्रेंड मिल गया है. एक बार जब उसकी डायरी गुम गयी थी, वो बेहदउदास हुई थी अपनी बेस्ट फ्रेंड के बिछड़ने से. तब जाना कि लिखना उसकी भी ज़रुरत है शायद, ऐसी जगह जहाँ उसे रिलीफ मिलती है.
बहरहाल वो लिखती है, अपने लिए. लिखकर खुश रहती है. उसे पढने का भी कम शौक नहीं...लेकिन उसकी पढने की किताबें मेरे जाने बूझे से काफी अलग है...मैं उससे हर दिन सीखती हूँ. पिछले दिनों मैं और ख्वाहिश अपनी पहली विदेश यात्रा पर थे. ख्वाहिश ने इस यात्रा को भी अपनी डायरी में दर्ज किया. सुभाष राय अंकल ने जब उससे उन डायरी के कुछ पन्ने प्रिंट करने को मांगे तो उसने संकोच के साथ दे दिए...यह पहली बार था जब मैं अपनी बेटी की डायरी को पढ़ रही थी...जाहिर है उसकी इज़ाज़त से. मेरी पलकें नम थीं...उसकी भाषा, उसकी अभिव्यक्ति, और भाषा पर पकड़...सब कितना अनायास कितना सहज. माँ हूँ, ज़ाहिर है मेरे लिए ये पल ख़ास है...जब उसे पढ़ रही हूँ शब्दों में भी...लोगों को उसे पढ़ते हुए देख रही हूँ...
बहरहाल सुभाष अंकल की रिक्वेस्ट मानकर ख्वाहिश ने अपने नानू को तो खुश किया ही इस बहाने मुझे मेरी ही बेटी के भीतर छुपे कुछ नए अंदाज़ देखने, सुनने का मौका भी मिला. ख्वाहिश ने अपनी लंदन डायरी को प्रिंट करने की इज़ाज़त दे दी है...आज पहली बार प्रतिभा की दुनिया में प्रतिभा की ख्वाहिश का स्वागत करते हुए बहुत खुश हूँ...उसकी लंदन यात्रा के तमाम पन्ने एक सिलसिले की रूप में यहाँ लगातार सहेजती जाऊंगी...
ख्वाहिश- लन्दन डायरी...जारी...
अच्छी डायरी है।
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