Monday, October 31, 2016

ख्वाहिश लंदन डायरी- 4


स्कॉटलैण्ड- सुबह जैसे ही आंख खुली तो देखा कि घर में हड़बड़ी मची हुई थी क्योंकि मैं तो भूल ही गई थी कि आज हमें सुबह पांच स्कॉटलैण्ड के लिए निकलना था। मैं भी जल्दी से उठकर तैयार हो गई और मम्मी, मैं, मामा, मामी निकल पड़े घर से ट्रेन पकड़ने के लिए। जब हम लोग टेªन में बैठे तब एक राहत की सांस ली। वहां की ट्रेन में सफर करना भी एक अलग अनुभव था। वहां ट्रेन में बैठकर मुझे यहां की ट्रेन और भारतीय ट्रेन में कुछ खास अंतर तो नहीं लगा बस यह था कि इन ट्रेनों की गति बहुत तेज थी और ये साफ सुथरी थीं। हर अनुभव के बाद मैं यही सोचती थी कि कब मैं अपनी दोस्तों से मिलकर अपनी अविस्मरणीय अनुभव बाटूंगी। सर थोड़ा-थोड़ा अधूरी नींद के कारण चकरा रहा था इसलिए टेªन में एक छोटी सी झपकी मार ली और आधा सुंदर रास्ता छूट गया। वहां पर जब मैंने इतने बड़े बड़े खुले हुए हरे मैदान देखती थी तो कुछ ऐसा लगता था कि या तो यहां के लोगो को जमीन का उपयोग करना नहीं आता या फिर प्रकति के प्रति सर्वाधिक प्रेम है।
चार घंटे के उस सफर के बाद हम पहुंच गए एडिनबरा। यह स्कॉटलैण्ड की राजधानी है। किसी ने अपना एक खाली फ्लैट हमें दो दिन के लिए रेंट पर दिया था। स्टेशन से पहले से बुक किये गए फ़्लैट की तरफ जाते हुए दूध और ब्रेड लिया और चल दिए। दो कमरे के इस फ्लैट में पहुंचकर हमें लगा कि हम घर में ही आ गए हों। शाम को हम घूमने निकले लेकिन उस शाम सिर्फ सड़कें ही छानीं। इंडियन रेस्टोरेंट की तलाश में इधर-उधर घूम रहे थे और जब तक खाना खाया तब तक काफी रात हो चुकी थी और हम वापस फ्लैट की तरफ लौटे। वहां पहुंचकर मामा मामी ने बताया कि उन्होंने हमारे लिए एक बस टूर बुक किया है जो हमें पूरा दिन एडिनबरा की सुंदर कंट्रीसाइड घुमायेगा क्योंकि वो लोग एक बार पहले ही यह सब घूम चुके थे तो वो लोग हमारे साथ नहीं गए. सुबह-सुबह मामा ने हमें बस में बिठाया. तकलीफ यह थी कि मुझे यह डर था कि मुझे कहीं बस में चक्कर न आयें। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। जब वहां के हरे-भरे पहाड़ और इनमें से गुजरते बादल देखे तो मेरी तो आंखें खुली की खुली रह गईं। रास्ता बहुत ही खूबसूरत था। पहली जगह जब बस रुकी तो आधे घंटे मे हमें घूमकर वापस आना था। पास में ही एक ब्रेकफास्ट और गिफ्ट
शॉप थी जहां लोग व्यस्त थे लेकिन मैंने और मम्मी खाने को प्राथमिकता नहीं दी और आधे घंटे का सही उपयोग करते हुए आसपास घूमने लगे। वहां पर दो याक दिखे जो कि जाली के पीछे थे। जिनमें से एक भूरे रंग का याक था जो मस्ती से घास चर रहा था। मम्मी की वह बात हमेशा याद आती है कि जैसे ही एडिनबरा की बातें होती थीं मममी हमेशा कहती थीं कि वह दिन एकदम एक अनदेखा सपना प्रतीत होता था। मम्मी की फोटोग्राफी खूब चल रही थी ऐसा लग रहा था कि मम्मी इसी नजारे का इंतजार कर रही थीं। मम्मी वहां के हर नजारे का अपने कैमरे की पोटली में छुपाने में लगी थीं। मैं बेचारी बच्ची मम्मी के कैमरे के कपड़े यानी कैमरे का कवर संभालने में लगी थी जब मम्मी कहती थी कि बेटा जरा फोटो खिंचाओ तो मुस्कुरा के खड़ी हो जाती या फिर उनकी खींचने लगती। यह सब चलता रहता था। हम लोग फिर जाकर बैठ गये रास्ते भर मेरी और मम्मी की वार्तालाप में सौ बार आह शब्द का प्रयोग हुआ। हमारा बस ड्राइवर बहुत ही चुनिंदा और खूबसूरत
जगहों पर बस रोक देता था। सामने झील का नजारा और पहाड़ होते। वो कहता कि आप लोग जल्दी से फोटो खींचकर आ जाइये। अगली जगह जहां बस रुकी वहां मुझे और मम्मी को बहुत ज्यादा भूख लग रही थी। पर खाना लेने में डर इस बात का था कि कहीं नॉनवेज न मिल जाये क्योंकि वहां के लोग तो मछली को भी वेजीटेरियन ही मानते थे और गाय के मास को भी। आखिर में सोच विचार के बाद हम लोगों ने एक टुकड़ा केक और कोल्ड डिंक की बोतल ली और शांति से एक पत्थर के उपर बैठकर हमने खाना खाया। भूख पूरी तरह से मिटी तो नहीं थी लेकिन एक बात की तसल्ली थी कि हम जो भी खा रहे थे वो वेजीटेरियन था। बस ड्राइवर द्वारा थोड़ी देर में अनांउसमेंट हुई तो हम लोग बस में जाकर बैठ गये । हम लोगों ने वहां की मशहूर लेक लॉकनेस के लिए टिकट बुक करवा ली. थोड़ी देर बाद जब हम लॉकनेस के पास उतरे तो मौसम खूब अच्छा हो चुका था और धीमी धीमी बारिश हो रही थी। हम लोग टिकट लेकर वहां पर बोट का इंतजार करने लगे। थोड़ी देर बाद छोटा क्रूज वहां आया। उस क्रूज के उपरी हिस्से में हम पहुंचकर बैठ गये। वह लेक बहुत सुंदर थी। एकदम साफ और नीली। आसपास पहाड़ थे। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गये हमें वहां का मशहूर एडिनबरा का किला दिखने लगा।
हम वहां उतरे नहीं लेकिन हमारा क्रूज एकदम कैसल यानी किले के करीब जाकर खड़ा हो गया। वो किला जो अब किसी खंडहर में बदल चुका था। वहां कई सारे पीले रंग की झाडि़यां थीं और तकरीबन एक घंटे की लॉकनेस की घुमाई के बाद हम बस में वापस लौट आये। इसी के साथ हमारा वापसी का सफर शुरू हुआ। हम वापस वहीं पहुंचे जहां से सुबह सफरªª शुरू किया था। मामा और मामी हमारा इंतजार कर रहे थे। हम बहुत थक चुके थे और भूखे थे। हमने वहां एक पुर्तगाली रेस्टोरेंट में पीटा ब्रेड और हमस खाया, बर्गर भी खाये। खाने के बाद हम लोग पैदल चलते हुए अपने फलैट तक पहुंचे जो हमने यहां बुक किया हुआ था। उस रात हम लोग बहुत जल्दी सो गये। दिन भर की यादें और थकावट लेकर हम गहरी नींद में सो गये। अगले दिन मौसम ने हमारा एकदम साथ नहीं दिया। बहुत बारिश हो रही थी इसलिए हम कहीं घूमने नहीं जा पाये। उसी दिन हमारी शाम की लंदन वापसी की ट्रेन थी। हमने दो बजे उस जगह को जहां हम रुके थे छोड़ दिया और धीमी-धीमी बारिश में ही स्टेशन की ओर चल दिए। हमने बहुत सारी तस्वीरों को अपने कैमरे में भर लिया था। वापसी के समय हमने ट्रेन में एक बड़ा सा रेनबो देखा। बल्कि डबल रेनबो जो खूब बड़ा सा था। रेनबो के सारे रंग उभरकर आ रहे थे। इतना बड़ा और क्लियर रेनबो मैंने पहले कभी नहीं देखा था। हम चारों रास्ते भर बातें करते रहे और पता ही नहीं चला कि सफर कब खत्म हो गया। हम लोग रात में लंदन पहुंचे। स्वाति दीदी ने हमारे लिए पहले से ही छोले पूड़ी बनाकर रखे थे. हम स्वादिष्ट छोले पूड़ी खाकर सो गये।

(अगली कड़ी में लीड्स की सैर....जारी )

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