आज जब हम अपनी भावनाओं को ठीक ठीक महसूस कर पाने से पहले ही पाने प्रिय तक उड़ेल पाने में समर्थ हैं, एक क्लिक पर सात समन्दर पार झट से पहुंचा पाते हैं अपना हाल-ए-दिल उस वक़्त में आइये महसूस करते हैं १८१२ यानि १०४ साल पहले एक प्रेमी की उस पीड़ा को जो अपनी प्रेमिका से दूर है और लम्हा लम्हा उसके लिए तरस रहा है. खतों में खुद को भरसक उड़ेल देने की इच्छा के बावजूद बार बार कुछ बच जाना और फिर-फिर लिखने बैठ जाना...वो आंसू, वो तड़प, वो मिलन की इच्छा और एक अदद ख़त. ये ख़त है सिम्फनी के जादूगर लुडविग बीथोवन का उसकी प्रेमिका के नाम...ख़त तो मिला लेकिन प्रेमिका का नाम नहीं...क्या फर्क पड़ता है...ये एक ही ख़त है जो तीन अलग अलग टुकड़ों में लिखा गया...
अदबी ख़ुतूत : छठवीं कड़ी :
६ जुलाई, 1812 सुबह
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मेरी ख्वाब परी, मेरा खुद का वजूद, आज सिर्फ कुछ शब्द लिखूंगा, वो भी पेन्सिल से. वही तुम्हारी दी हुई पेन्सिल. कल तक मेरा सामान यहाँ से बंध जायेगा. इन सब प्रक्रियाओं में कितना वक़्त जाया जाता है न?
हमारा प्यार क्यों इन सबके बगैर नहीं रह सकता, बिना कोई अपेछा किये, बिना कोई मांग एक दूसरे से किये. क्या इन चीज़ों के बगैर हम महसूस नहीं कर रहे कि किस कदर तुम सिर्फ मेरी हो और मैं सिर्फ तुम्हारा. ओह, यूँ कुदरत की खूबसूरती में डूबते जाना अपने मन मस्तिष्क को एकाग्र कर अनुभूत करना प्रेम. प्रेम अपने इर्द-गिर्द सब कुछ चाहता है, जो कि वाजिब भी है. इसलिए मेरे लिए तुम्हारे होने से ही कुछ भी होने के मायने तय होते हैं, और मैं जानता हूँ कि तुम्हारे लिए भी मेरा साथ कितना ख़ास है. कभी न भूलना प्रिय कि तुम्हारे साथ होना ही जीवन में होना है. तुम्हारे साथ न होने के उस दर्द को तुम समझ सकती हो न, जो मैं सह रहा हूँ इन दिनों?
हमें अब जल्दी ही मिलना चाहिए. देखो न कैसी मुश्किल है कि मैं तुमको वो सब आज नहीं पहुंचा पा रहा हूँ जो मैंने पिछले दिनों जिन्दगी में महसूस किया है, जहाँ मेरा दिल तुम्हारे बेहद करीब था. मेरा अंतर्मन तुम्हें वो एक-एक एहसास देने के लिए बेचैन है. ऐसे कई लम्हे थे जब मैंने तुम्हारी कमी को शिद्दत से महसूस किया. जब मुझे लगा कि मैं कुछ कह नहीं पाऊँगा.
मेरी प्रिय, तुम जानती हो न कि सिर्फ तुम ही मेरी जिन्दगी का अनमोल खजाना हो. जैसे मैं तुम्हारे लिए हूँ. बाकी तो ईश्वर ही जानता है कि उसने हम दोनों के लिए क्या सोचा है...
तुम्हारा वफादार
लुडविग
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सोमवार, शाम, ६ जुलाई
ओ मेरी प्रिय, मैं समझ रहा हूँ कि तुम सह रही हो. अभी मैंने महसूस किया कि ये ख़त मुझे जल्दी से पोस्ट कर देने चाहिए. क्योंकि डाक भी तो सोमवार से गुरुवार के बीच ही निकलती है.
ओह प्रिये, ये क्या जिन्दगी है. कहाँ तुम हो, कहाँ मैं हूँ. तुम मुझमें हो, मैं तुम में हूँ लेकिन हम साथ नहीं. मुझे जल्द ही कुछ करना होगा कि मैं तुम्हारे साथ रह सकूँ.
तो, तुम्हारे बिना...कुछ भी नहीं. जब मैं खुद को इस ब्रह्मांड के बरक्स देखता हूँ तो सोचता हूँ कि कौन हूँ मैं? वो कौन हैं जिसे लोग महान कहते हैं...और फिर...प्रिय सब ईश्वर के बनाये पुतले ही लगते हैं मुझे. यह सोचकर रोना आता है कि तुम मेरे बारे में अब कोई भी खबर शनिवार की सुबह ही पा सकोगी. तुम मुझे जिस तरह बेइंतिहा प्यार करती हो उसके बारे में सोचते हुए मेरा प्यार और...और...और बढ़ता जाता है, मजबूत होता जाता है. अपनी भावनायें कभी मत छुपाना मुझसे.
शुभ रात्रि प्रिय, मैंने अभी अभी पानी पिया है और अब मुझे सो जाना चाहिए. ओह ईश्वर, हम कितने पास, कितने दूर...
तुम्हारा
लुडविग
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७ जुलाई, सुबह
गुड मॉर्निंग प्रिय,
मैं अभी बिस्तर में ही हूँ और तुम्हारे खयालों से घिरा हुआ हूँ. मेरी प्रिये, यहाँ वहां हर जगह तुम ही तुम हो ये सोचकर खुश हूँ, लेकिन फिर उदास भी हो जाता हूँ हमारे बीच की दूरियों के बारे में सोचकर. इंतजार है कब किस्मत हमारी सुनेगी, कब हम साथ होंगे. या तो मैं तुम्हारे साथ रह सकता हूँ या मैं रह ही नहीं सकता. हाँ, अब मैंने फैसला कर लिया है बहुत हुआ इधर उधर भटकना. जब तक मैं तुम्हारी बाँहों में नहीं पहुँच जाता, तुम्हारी बाँहों में अपना घर महसूस नहीं करता मैं अपने भीतर का यह तूफ़ान ख़त में लिखकर तुम्हारे पास भेजता रहूँगा. मेरे ख़त तुम तक मेरे एहसास पहुंचाते रहेंगे और तुमको यकीन दिलाते रहेंगे कि सिर्फ और सिर्फ तुम ही मेरे लिए ज़रूरी हो, मेरी समस्त भावनाएं सिर्फ तुम्हारे लिए हैं. कोई और कभी मेरे दिल तक नहीं पहुँच सकता. कभी नहीं, कभी भी नहीं. हे ईश्वर, क्यों दो प्यार करने वालों को दूर रहना पड़ता है. और यहाँ मेरी जिदंगी..एकदम बिखरी और उलझी हुई
तुम्हारे प्यार ने मुझे दुनिया का सबसे खुश और सबसे उदास व्यक्ति एक ही समय में एक साथ बनाया है. प्रिये मैं चाहता हूँ की यहाँ से रोज डाक निकले और तुम तक रोज एक ख़त मैं पहुंचा सकूँ. अब मैं लिखना बंद करता हूँ ताकि ये ख़त पोस्ट कर सकूँ.
ओह, शांत हो जाओ प्रिये..मुझे प्यार करो...महसूस करो आज...तुमसे मिलने की बेकरारी मेरे आंसुओं में छलक रही है, इसे महसूस करो मेरी जिन्दगी. तुम मेरा सब कुछ हो. मुझे यूँ ही प्यार करती रहो..करती रहो...बगैर मेरे प्यार पे कोई शुबहा किये.
तुम्हारा प्रेमी
लुडविग
(प्रस्तुति- प्रतिभा कटियार)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2016) को "आया है चौमास" (चर्चा अंक-2398) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
behad bhawpurn :)
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