Thursday, October 22, 2015

हिज्र की शब और ऐसा चांद

पूरा दुख और आधा चांद
हिज्र की शब और ऐसा चांद

इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चांद

मेरी करवट पर जाग उठे
नींद का कितना कच्चा चांद

सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चांद

रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चांद...

- परवीन शाकिर 

5 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति, आभार आपका।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। बधाई।

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  3. बहुत सुन्दर रचना।

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