Tuesday, May 5, 2015

ओ दाढ़ीवाले...



ओ दाढ़ीवाले,
जहाँ बता गए थे खड़े होने को उसी तरफ खड़ी हूँ
तमाम अनसुनी आवाजों को थामे
धूप और धूल के गुबार के बीच
जिंदगी की सोंधी खुशबू सहेजते

लुहार की चोट, मजदूर के पसीने
किसान की बर्बाद फसलों के नीचे से
दबी कुचली हिम्मतें तलाशते 

ओ दाढ़ीवाले
यक़ीन मजबूत है कि
सही रास्ता वही है जो तुमने बताया
जन्मदिन मुबारक हो कामरेड....


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