Monday, February 17, 2014

जीवन संगीत


चलो बैठते हैं किसी नदी के किनारे

सरगम की मद्धम आंच पर
चढ़ाते हैं दुनिया के रंज़ो ग़म

तुम अपनी बोलियों की बालियां उतार देना
और मैं अपनी चुप

मिलकर रचेंगे हम जीवन संगीत
जिसे सुनने को
सृष्टि कबसे बेचैन है.…

(सेल्फ इमेज )


5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 19/02/2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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  3. वाह, बहुत सुन्दर

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