Tuesday, July 23, 2013

हौले से रखना कदम ओ सावन...


पूरनमाशी के रोज आषाढ़ ने सावन से कुछ शर्त लगा ली. आषाढ़ की बारिश का गुरूर ही कुछ और होता है और कैलेण्डर तो बस याद के पन्ने पलटता है. मगरूर आषाढ़  बोला कि वो तब  तक न बीतेगा जब तक उनकी आमद न होगी। कैलेण्डर ने ख़ामोशी से सर झुका लिया जिसके अगले पन्ने पर आमद का वादा दर्ज था. 

पूरण की रात एक पन्ना कैलेण्डर से उतरा और आसमान पर लिख आया सावन---

सुबह सिरहाने कुछ आहटें रखी थीं. सुबह की प्याली में आसमान से टपकी एक बूँद। चारों तरफ छाई हरियाली में और निखार आ गया.

बिटिया ने प्यार से निकाला हरे रंग का दुपट्टा।

मुस्कुराकर टुकुर-टुकुर देख रहे हैं बादल। उन्हें ताकीद है कि हौले से रखना इस बार कदम कि आषाढ़ ने काफी उत्पात मचाया है…

3 comments:

  1. हरा रंग जब गीला हो जाता है, और आकर्षित करने लगता है।

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  2. बहुत सुंदर,
    सुंदर भावों को शब्द दिया है आपने..



    मुझे लगता है कि राजनीति से जुड़ी दो बातें आपको जाननी जरूरी है।
    "आधा सच " ब्लाग पर BJP के लिए खतरा बन रहे आडवाणी !
    http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/07/bjp.html?showComment=1374596042756#c7527682429187200337
    और हमारे दूसरे ब्लाग रोजनामचा पर बुरे फस गए बेचारे राहुल !
    http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/blog-post.html

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  3. मुस्कुराकर टुकुर-टुकुर देख रहे हैं बादल। उन्हें ताकीद है कि हौले से रखना इस बार कदम कि आषाढ़ ने काफी उत्पात मचाया है… सच सावन रिमझिम बीते बस यही है मन में ...
    बहुत सुन्दर

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