Monday, September 24, 2012

इनमें तो कुछ भी ठीक से दर्ज नहीं....


भूगोल के किसी भी पन्ने में नहीं दर्ज हैं
एवरेस्ट से भी ऊंचे वे पहाड
जिन्हें पार किये बगैर
जिंदगी तक नहीं जाता कोई रास्ता

नहीं दर्ज कोई जंगल
जिनसे गुजरे बगैर
मुमकिन ही नहीं खुद की
एक सांस भी छू पाना

नहीं हैं कोई जिक्र उन नदियों का
जो आंखों से लगातार बहती हैं
और सींचती रहती हैं
पूरी दुनिया में प्रेम की फसल

ना...कहीं नहीं लिखा उन सहराओं का नाम
जिसके जर्रे-जर्रे में छुपे हैं
इश्के के नगमे
और विरह की कहानियां

उन दिशाओं का नाम तक नहीं
जिस ओर गया था प्रेम का पथिक
देकर उम्र भर का इंतजार

भला किस पन्ने पर लिखा है
उन लहरों का नाम
जिन पर मोहब्बत लिखा था
और वो हो गई थी दुनिया की सबसे उंची लहर

बार-बार घुमाती हूं ग्लोब
पलटती हूं दुनिया भर के मानचित्र
नहीं नजर आता उस देश का नाम
जहां अधूरा नहीं रहता
प्यार का पहला अक्षर
मुरझाती नहीं उम्मीदें

स्मृतियाँ शाम के उदास साये में
लिपटकर नहीं आतीं
और एक दिन मुकम्मल हो ही जाता है इंतजार
जिंदगी के इसी पार

किसने लिखी हैं ये भूगोल की किताबें
किसने बनाये हैं दुनिया के नक्शे
इनमें तो कुछ भी ठीक से दर्ज नहीं....

(२३ सितम्बर को अमर उजाला के साहित्य पेज पर प्रकाशित )

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर और भावप्रणव प्रस्तुति!

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  2. गोली न मार दें ..
    नहीं ! भूगोल की किताब लिखने वालों को नहीं बे..
    तुमको !

    :P

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  3. बेहतरीन..कितना कुछ समझना शेष है..

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  4. अभी कितना कुछ है जो सीखना बाकि हैं इस जिंदगी से ...

    बेहद खूबसूरत भाव रचना

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  5. गत रविवार अमर उजाला में ये कविता छपी थी, मैंने पढ़ी थी ... साधुवाद ... ग्लोब और एटलस नाकाफ़ी हैं आपकी खोज पूरी करने के लिए ...ऐसा एक नए मुल्क़ की तामीर हमें ख़ुद करनी होगी

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  6. abhi bhut kuch seekhna aur samajhna baaki hai ....khubsurat aur bhavpurna rachna

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  7. abhi bhut kuch seekhna aur samajhna baaki hai ....khubsurat aur bhavpurna rachna

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  8. bhugol to badal gaya ab itihaas ki baari hai.....

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  9. बार-बार घुमाती हूं ग्लोब
    पलटती हूं दुनिया भर के मानचित्र
    नहीं नजर आता उस देश का नाम
    जहां अधूरा नहीं रहता
    प्यार का पहला अक्षर
    मुरझाती नहीं उम्मीदें

    .

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