दूर-दूर तक फैला एकांत का विस्तार और उसमें चहलकदमी करती खामोशी. एक पांव की आहट दूसरे को सुनाई नहीं देेती. एकांत का हर हिस्सा अंधकार मे डूबा हुआ. इतना घना अंधेरा कि सब कुछ एकदम साफ नजर आ रहा है...सचमुच अंधेरे में चीजें साफ नजर आती हैं. जिंदगी का हर लम्हा बिखरा पडा है.
एकांत के विस्तार में जिंदगी भर का कोलाहल गुम हो गया है. असीम शांति का अनुभव हो रहा है. मानो युगों से ऐसी ही नीरव शांति की कामना में थी. क्या यही वो शांति है जिसकी तलाश में संतजन निकल पडते थे...क्या यही वो शांति है जिसके बाद जिंदगी की कोई भी अभिलाषा बाकी नहीं रहती. क्या यही वो शांति है जिसका हाथ थामकर दूर कहीं निकल जाने को जी बेताब था.
नहीं, ये वो शांति नहीं है. अभी इसमें अपने होने का अहसास बाकी है. मैं जिन्दा है कहीं और उसके साथ जुडा है अहंकार भी. अभी इसे मेरी शांति कह रही हूं. जब तक ये मेरी है, ये शांति नहीं हो सकती. इसके लिए मेरा को अपना स्थान छोडना होगा. लेकिन होश संभालने के साथ जिस मैं ने हाथ पकड लिया हो वो कैसे छूटेगा भला. ये मैंने लिखा, ये मैंने नहीं लिखा, मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ...ये मैं तो मुझसे भी बडा हो गया है. एकांत के विस्तार में भी मैं नहीं छूट रहा. न ही छूट रही है सांसों की रफतार...न नब्ज रुकी है अभी और न बंद हुआ है दिल का धडकना...कितना शोर है चारों तरफ. कितनी तेज है सांसों की रफतार...नहीं, इतना एकांत काफी नहीं है मेरे लिए अभी इसका विस्तार होना बाकी है इतना विस्तार कि वहां किसी की याद न आए, अतीत से कोई आवाज न आए, आने वल कल की कोई उम्मीद भी नहीं बस अंधेरे को चीरती एक सफेद चादर हो. शफफाक....सफेद फूलों का काफिला हो. गालिब का दीवान सिरहाने रखा हो और युगों की यात्रा कर मेरी आंखों में लौटी नींद हो....सदियों की नींद सदियों तक.
अभी इतना एकांत नहीं भरा जीवन में. कल शाम रियाज के वक्त झन्ननननन से टूट गया था सितार का तार...न जीवन का रियाज ही हुआ ढंग से न मत्यु का. कितनी कमअक्ल विद्यार्थी निकली मै जिंदगी की पाठशाला की. कोई ग्रेसमार्क भी नहीं.
एकांत इस जहाँ मे मिलता नहीं
ReplyDeleteभीतर का शोर खत्म हो तो मिले
खुद से बातें करती रचना... सुन्दर
ReplyDeleteबढिया, बहुत सुंदर
ReplyDeleteएकांत का भान होते ही एकांत सिमट जाता है।
ReplyDeleteगहन नीरवता खोजता एकांतप्रिय मन ......
ReplyDeleteसुंदर भाव ....
शुभकामनायें...
मै का लोप होते ही परम शांति का भान हो जाता है ………अत्यंत सुन्दर वार्तालाप्।
ReplyDeleteक्या यही वो शांति है जिसकी तलाश में संतजन निकल पडते थे...क्या यही वो शांति है जिसके बाद जिंदगी की कोई भी अभिलाषा बाकी नहीं रहती. क्या यही वो शांति है जिसका हाथ थामकर दूर कहीं निकल जाने को जी बेताब था.
ReplyDeleteकुछ प्रश्नों के उत्तर नहीं होते......
बस होते हैं......??????????????
नहीं, ये वो शांति नहीं है. अभी इसमें अपने होने का अहसास बाकी है. मैं जिन्दा है कहीं और उसके साथ जुडा है अहंकार भी. अभी इसे मेरी शांति कह रही हूं. जब तक ये मेरी है, ये शांति नहीं हो सकती. इसके लिए मेरा को अपना स्थान छोडना होगा...
ReplyDelete..
तभी मैं कहूँ कि आजकल एक एक महीना क्यों इंतज़ार करना पड़ता है ..एक एक लेख के लिए कुछ भी हो मैं खुश हूँ
अगर लिखते रहोगे तो ...पीछे पीछे लगा रहूँगा अपना स्वार्थ है मेरा कि आपको पढूं ....
और अगर नहीं भी लिखोगे तो भी जो आज तक लिखा है उसका एक दीवान बना लूँगा और सिरहाने रख लूँगा, उतनी गहरी नींद न सही कुछ आवाजें तो रुकेंगी ही ये मैं जानता हूँ !
By- Anand Dwivedi (Due to some modration problem I am posting this comment. Thanks Anand!)
इतना एकांत काफी नहीं है मेरे लिए अभी इसका विस्तार होना बाकी है इतना विस्तार कि वहां किसी की याद न आए, अतीत से कोई आवाज न आए, आने वल कल की कोई उम्मीद भी नहीं बस अंधेरे को चीरती एक सफेद चादर हो. शफफाक....सफेद फूलों का काफिला हो....
ReplyDeleteशब्द आपके हैं पर एहसास...जैसे लगता है खुद का हो ..इतना दिल के करीब जाकर आपने इस रचना का विस्तार किया है... बहुत सुन्दर ..प्रतिभा जी !! शुभकामनाएँ !!
इतना एकांत काफी नहीं है मेरे लिए अभी इसका विस्तार होना बाकी है इतना विस्तार कि वहां किसी की याद न आए, अतीत से कोई आवाज न आए, आने वल कल की कोई उम्मीद भी नहीं बस अंधेरे को चीरती एक सफेद चादर हो. शफफाक....सफेद फूलों का काफिला हो....
ReplyDeleteशब्द आपके हैं पर एहसास...जैसे लगता है खुद का हो ..इतना दिल के करीब जाकर आपने इस रचना का विस्तार किया है... बहुत सुन्दर ..प्रतिभा जी !! शुभकामनाएँ !!