यात्राओं में सबसे सुन्दर क्या लगता है? ये मैंने अपने आपसे पूछा. एक चुप्पी जो मेरे ही भीतर थी, उसने भीतर ही भीतर चहलकदमी शुरू कर दी. जवाब जल्दी ही मिल गया. छूटना...मुझे यात्राओं में छूटना अच्छा लगता है. घर से छूटना, रिश्तों से छूटना, शहर से छूटना, रास्ते में मिलने वाले पेड़, पौधे, खेत, जानवर, नदी, पहाड़ सबका छूटना. यात्राओं की मंजिल का तय होना ज़रूरी नहीं लेकिन उस मंजिल का भी छूटना तय है. मै छूटती हुई चीज़ों को प्यार से देखती हूँ. बहुत प्यार से. आने वाली चीज़ों का मोह छूटने वाली चीज़ें अक्सर कम कर देती हैं. यूँ भी जो चीज़ छूट रही होती है उसका आकर्षण बढ़ता ही जाता है. वो खींचती है अपनी ओर. यही जीवन का नियम है. इस छूटने में एक अजीब किस्म का सुख होता है.जिस चीज के प्रति आकर्षण बढ़ रहा हो, उसका छूटना जीवन का सबसे सुखद राग है. जिसे हम अक्सर विषाद या अवसाद का नाम देते हैं असल में जीवन वहीँ कहीं सांस ले रहा होता है.
होने और न होने के बीच एक जगह होती है. जैसे आरोह और अवरोह के बीच. जैसे स्थायी और अंतरे के बीच. जहाँ हम राग को खंडित किये बगैर साँस लेते हैं. इन्ही बीच के खाली स्पेस में छूटने का सुख रखा होता है. अगर रियाज़ में जरा भी कमी हुई तो वो खाली स्पेस जहाँ छूटने का सुख और सांस लेने की इज़ाज़त ठहरती है वो जाया हो जाती है. मैं इस स्पेस में हर उस सुख को उठाकर रख देती हूँ, जिससे छूटना चाहती हूँ. इसके लिए यात्राओं में होना ज़रूरी नहीं सम पर होना ज़रूरी है. यात्रा इस सम पर होने को नए अर्थ देती है. जीवन को समझने का नया ढंग. ओह, मैं भटक गयी शायद. मैं छूटने की बात कर रही थी. हाँ तो मुझे जवाब मिला कि मुझे छूटना पसंद है यात्राओं के दौरान. जीवन यात्रा हो एक शहर से दूसरे शहर की यात्रा.
सफ़र मुझे ट्रेन से किया हुआ ही पसंद है. दरवाजे पर खड़े होकर घंटो छूटते जा रहे संसार को देखना. हवा को मुठ्ठी में कैद करने की कोशिश करना और उसका लगातार छूटता जाना. ये छूटना छू जाता है दिल को. कभी कभी लगता है हमें जिन्दगी का ककहरा गलत पढाया गया. हम चीज़ों को पाने में सुख ढूँढने लगे, और उसके खोने में दुःख महसूस करने लगे. लेकिन इसके उलट की स्थिति भी कम आनंददायक नहीं थी. बस कि हम उस आनंद को जीना नहीं सीख पाए. जीवन के सफ़र में हर छूटती हुई चीज़ को याद करते हुए लगा कि कितना प्रेम था उन चीज़ों से जो छूट गयीं, उन लम्हों से जो छूट गए, वो लोग जीवन में आते आते रह गए. वो रह जाना, वो छूट जाना ही सुख कि ओर धकेलता है. मिल जाना या पा लेना सुख के प्रति विमुख होना है. तलाश है नए सुख की...मैंने छूटना स्वीकार किया, उसके सुख को सिरहाने रखा और महसूस किया कि हर उलझन से, हर दुविधा से, हर मुश्किल से छूटती जा रही हूँ. ट्रेन चलती जा रही है और मै खुद से भी छूटती जा रही हूँ. बस एक चाँद कमबख्त छूटता नहीं साथ दौड़ता रहता है...मै मन ही मन सोचती हूँ तू मेरा कितना भी पीछा कर ले बच्चू, भोर की पहली किरण के साथ तू भी छूट ही जायेगा. अचानक घडी पे निगाह गयी...सुबह सर पर खड़ी थी. अब चाँद के भी छूटने का समय आ गया था. एसी कम्पार्टमेंट का नीला पर्दा हटती हूँ और छूटते हुए चाँद को हसरत से देखती हूँ...वो मुझे देखकर मुस्कुराता है और बाय कहता है. ठीक इसी वक़्त सूरज की पहली किरण का जन्म होता है.
एक दोस्त की बात याद आती है अगर कुछ छूटता है तो नए के लिए स्पेस बनती है...इसलिए छूटना अच्छा ही होता है...वैसे इस जीवन को जिससे इतना लाड लगाये बैठे हैं इसे भी तो छूटना ही है एक दिन...
(प्रकाशित)
ऊंची बात बनायी है शिरिमानजी ने
ReplyDeleteजब शरीर गतिमान हो जाता है तो विचार बहने लगते हैं।
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर संदेश देती हुई कहानी। अंत वाकई सराहनीय है।
ReplyDeleteख़ुद से वजनी सवाल, उतना ही वजनी जवाब भी!
ReplyDeleteयात्राओं का सबसे बड़ा सुख छूटना ही तो है...
सभी दृश्य छूट ही जाने हैं...
ReplyDeleteगतिमान समय नगीने जड़ता रहे अनुभूतियाँ के.... यूँ ही!
सुन्दर..विचारणीय...छूटना तो सब कुछ है...
ReplyDeleteह्म्म्मम्म्म्म !
ReplyDeleteGoa की तैयारी हो गयी ?
@ Baabusha- किसी भी ताल पे कोई भी राग छेड़ना तो कोई तुमसे सीखे. हाँ हो गयी तैयारी...चलोगी?
ReplyDeleteछूटना नये के लिए जमीन तैयार करता है।
ReplyDelete..सुंदर दर्शन।
तुम्हारी पोस्ट पढ़ना कई सारी संवेदनाओ को जगा देता है.. छूटने को बहुत गहराई से देखा है.. वाकई..सुन्दर लगा
ReplyDeleteवह पल ही नही जब प्रेम भी बीत गया
एक शिथिल प्रतीक्षा टिकी रही
एक रास्ता चलता रहा
छलता रहा छलता रहा ...
मुझे भी अक्सर लगता है कि हमें जिन्दगी का ककहरा गलत पढाया गया. हम चीज़ों को पाने में सुख ढूँढने और उसके खोने में दुःख महसूस करने लगते हैं लेकिन इसके उलट की स्थिति भी कम आनंददायक नहीं थी.
ReplyDeleteजीवन के सफ़र में हर छूटती हुई चीज़ को याद करते हुए लगा कि कितना प्रेम था उन चीज़ों से जो छूट गयीं, उन लम्हों से जो छूट गए, वो लोग जीवन में आते आते रह गए.
सुन्दर.
तुम्हारे इस सवाल ( चलोगी ? ) का जवाब एक महीने पहले दे चुकी हूँ.
ReplyDeleteसब गुर आते हैं अपन को ..फिर काहे तालों और रागों में उलझाए हो ?
chutana nai ka agman ka swagat aur chalna zindagi ka falsafa charaiwati charaiwati !!! Ati Sundar
ReplyDeleteजीवन के रंगों को एक नया आयाम देती खूबसूरत रचना समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletePahli baar padha aapko, shaj hi vichar aaya ki abhitak kyon nahi...uttar bhi shaj hi aaya ki har cheez ka ek waqt hota hai chanda bhi bhor ke aane par hi chhutata hai ...gatiman rahna hoga.
ReplyDeletebahut kuchh lekar ja raha hun is blog se kuchh chhorne kamaza lene ka mera bhi man hai...khel khel me anand hi anand me !
शुक्रिया आनंद जी, पल्लवी जी. पहली बार आना और मेरे छूटने को यूँ पकड़ना...
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