उस रोज चांद जरा देर सा आया था. लड़की उसके इंतजार में बैठी थी. अपनी तिथियों की गणना वो बार-बार करती. कहीं कोई गड़बड़ी नहीं निकलती. फिर वो पूरे आकाश का चक्कर अपनी आंखों से लगाती और वापस लौट आती. आखिर क्यों नहीं आया आज उसका चांद. वो यूं ही हवाओं से खेलते हुए चलने को उठी. पांव बढ़ाया तो हैरत में पड़ गई. ये क्या, उसके पांव भीगे हुए से क्यों है. न$जर को थोड़ा और विस्तार दिया तो उसकी हैरत का ठिकाना न रहा. शहर की सारी सड़कें गायब हो चुकी थीं. सड़कों की जगह नदियां बह रही थीं. उसने झुककर करीब से देखा. हां, नदी ही तो थी. पानी में डाला तो पूरा हाथ भीग गया. वो फिर से उसी जगह बैठ गई. पांव को सड़क पर अरे नहीं, नदी में डालकर. रात खिसककर उसके कंधे के एकदम करीब आ बैठी थी. नदियां खूब मचल रही थीं. उनके प्रवाह में शरारत थी. उसने रात का चेहरा देखा, उससे पूछना चाहा कि यह क्या शरारत है लेकिन रात का चेहरा भी उसकी ही तरह आश्चर्य से भरा था. नदियों की ठिठोली दोनों मिलकर देखने लगीं. सड़कों पर दौडऩे वाले वाहन नाव बन चुके थे. बच्चे पानी को एक-दूसरे पर उछाल रहे थे. चारों ओर बस कलकल-कलकल का शोर था. लड़की ने देखा नदियों का पानी खूब साफ था. उसने अपनी अंजुरी में पानी को भरा और पी लिया. पानी नहीं, अमृत था वो. बहुत मीठा, बहुत स्वादिष्ट. लड़की को अपनी सदियों की प्यास उस पानी को पीकर बुझती महसूस हुई. उसने अपनी अंजुरियों में भर-भरकर ढेर सारा पानी पिया. पानी पीने से उसकी सूखी, निर्जीव हो चुकी आत्मा को जो सुख मिला, उसने उसकी आंखें नम कर दीं. उसने मन ही मन सोचा जाने किसने दुख में रोने का रिवाज बनाया है, असल रोना तो सुख में आता है.
उसका मन नदी के भीतर उतरने का हुआ. रात उसकी सहेली थी. उसने दुपट्टा खींचा और कहा, ना सखी मत जा. लड़की ने कहा, क्यों? सहेली जानती थी लड़की को तैरना नहीं आता. वो चुप रही. लड़की ने उस मौन पर अपनी मुस्कुराहट की मुहर लगा दी. वो नदी में उतर गई. उसने देखा नदी में ढेर सारे फूल उतरा रहे हैं. जो तारे आसमान से गायब थे, वे सब के सब शहर की नदियों में मस्ती कर रहे थे. वो थोड़ा और आगे गई तो एक पेड़ की डाली में अटका हुआ चांद दिखा. ओह तो ये महाशय यहां अटके हैं. लड़की ने मन ही मन सोचा और मुस्कुराई. इसीलिए आज आसमान सूना है. तुम यहां क्या करने आये? लड़की ने चांद से बनावटी गुस्सा करते हुए पूछा. चांद ने सर खुजाते हुए कहा, आज अमावस की रात है ना. मेरी आसमान के दफ्तर में छुट्टी होती है. और धरती पर दीवाली. मैंने सोचा आज धरती पर चलते हैं. साथ में ये कम्बख्त तारे भी हो लिए. लेकिन देखो ना, मैं कबसे इस कनेर की डाल में अटका हूं. कोई नहीं बचाने आया. तारे सारे के सारे मटरगश्ती कर रहे हैं. कौन आयेगा तुम्हें बचाने बोलो तो?
तुम...चांद ने शरमाकर कहा.
लड़की ने उसे कनेर की डाली से अलग कर दिया. अब वो शहर की सड़कों पर नहीं... नहीं... नदी में तैरने लगा. उसके साथी तारे भी. पूरी धरती पर पानी है और उनमें चांद सितारे तैर रहे हैं. फूल तैर रहे हैं. चांद ने लड़की से पूछा, ये शहर के सारे लोग कहां गये हैं?
लड़की मुस्कुराई. तुम आराम से मटरगश्ती करो. तुम्हें आज कोई तंग नहीं करेगा. शहर के सारे लोग धर्म के कार्यों में व्यस्त हैं...
चांद मुस्कुराया, ये बहुत अच्छा हुआ.
लेकिन एक बात बताओ, ये शहर की सड़कें आज नदियां कैसे बन गईं? लड़की ने पूछा.
चांद उदास हो गया?
बताना जरूरी है? उसने पूछा.
हां, लड़की ने कड़े स्वर में कहा.
आज की रात एक स्त्री का प्रेमी उसे यह कहकर गया था कि जिस रात पूरी धरती रोशनी से नहाई होगी और आसमान चांद सितारों से भरा होगा, उस रोज वो वापस आयेगा. धरती जिस रोज रोशनी से भरती है उस रोज आसमान पर चांद नहीं खिलता. और जिस दिन आसमान पर चांद खिलता है उस रोज धरती रोशनी से नहाई नहीं होती. लड़की सदियों से उस रात का इंतजार कर रही है. हर रात धरती को दियों से भर देना चाहती है. लेकिन न वो धरती का सारा अंधेरा मिटा पाती है न आसमान पर चांद सितारे उगा पाती है. वो हर रात रोती है. तुम्हें सड़कों की जगह आज जो नदियां दिख रही हैं, वो दरअसल, उस लड़की की आंख के आंसू हैं. आज उसके इंतजार की हजारवीं रात है...
लड़की गुमसुम होकर चांद की कहानी को सुन रही थी.
लेकिन आंसू का स्वाद तो नमकीन होता है. ये पानी तो बहुत मीठा है? लड़की ने सवाल किया.
हां, क्योंकि लड़की का रोना मोहब्बत में रोना था. और मोहब्बत की मिठास से तो जहर भी अमृत हो जाता है. ये जो पानी का स्वाद है ना ये उसकी मोहब्बत का स्वाद है. मीठा, अमृत सा. लड़की की आंख नम हो गई. उसने अंजुरी में भरकर पानी को फिर से पिया. उसने महसूस किया अपनी सूखी आत्मा को हरा होते. चांद नदी में तैरते हुए अब दूर जा चुका था...
और मोहब्बत की मिठास से तो जहर भी अमृत हो जाता है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बात कही है!
जादुई कथा बुनी गयी है....
एक अलग सी ख्वाबो की दुनिया की तहरीर ।
ReplyDeleteभावों की गहराई पढ़ तो ली पर समझने के लिये क्या करना होगा?
ReplyDelete'असल रोना तो सुख में आता है..........'
ReplyDeleteतो क्या..... इसीलिए ......मैं .....? ह्म्म्म ?
और तुम ?
नहींsssssssssssssssssssssssssss
ReplyDeleteइतने सपने क्यों देखती हो, अब जाग भी जाओ।
ReplyDeleteहै अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
ReplyDeleteक्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
@Praveen- Nadi men utarna hoga.
ReplyDelete@Baabusha- Sawal tum, Jawab bhi tum...
@Ajay ji- :)
@ Anupama, Vandna- Aap dono ka shukriya man se padhne ke liye...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति .. दीपावली की शुभकामनाएं !!
ReplyDeletesunati achha ho jyada achha .......
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