Friday, July 8, 2011

रिल्के, मरीना और एक सिलसिला - 8

रिल्के उन दिनों एकान्तवास में थे. म्यूजॉट की पहाडिय़ों पर वे अपने स्वास्थ्य और एकान्त दोनों को साध रहे थे. मरीना के पत्र उन्हें वहीं मिले. पहले पत्र का उत्तर उन्होंने हमेशा की तरह तुरंत यानी 8 जून को दिया. 

प्रिय मारीना
मैं खूबसूरत घाटियों में एकान्त जी रहा हूं. एक हरारत मेरे मन पर और शरीर पर तारी है. आज मैंने तुम्हारे लिए एक कविता लिखी है. 
ओह मारीना! कितना नुकसान होता है 
आसमान का टूटकर गिरे तारों से 
हम भरपाई नहीं कर सकते उसकी
चाहे जहां दौड़ें उनमें बढ़ोत्तरी के लिए 
जोड़ के किस तारे की तरफ जाएं 
सभी की तो गिनती हो चुकी है पहले से ही 
वह भी नहीं कर सकता भरपाई 
जो गिराता है उस पवित्र तारे को...
(कविता की इन पंक्तियों का अनुवाद- मनोज पटेल) 


रिल्के की यह कविता उनके कंप्लीट वर्क का महत्वपूर्ण हिस्सा बनी.

जिस तरह शब्दों के भीतर डुबकियां लेकर रिल्के पवित्र और गहन भाव ढूंढ लाने में माहिर थे ठीक उसी तरह संभवत: उन्हें आगत का भान भी हो जाता था. उन्होंने उसे लिखा-

....तुम्हें पता है मारीना, ऐसा कितना कम होता है कि हम अपनी नियति को पहचान सकें. कितना कम होता है ऐसा कि हम हमारे लिये जारी किये जा चुके नियति के अदालती फरमानों को जो पहले ही लिये जा चुके हैं समझ सकें.
जो लोग प्रेम में हैं उन्हें तो यह बात जरूर समझनी चाहिए...कि प्रेम असल में अवसाद और निराशा की ओर प्रस्थान है. वही निराशा और अवसाद जो जीवन का हासिल बन सकता है. शान्ति क्या है सिवाय मृत्यु के...सारा जीवन शांति की तलाश ही तो है. 
उम्मीद है तुम जीवन को समझ रही हो. प्रेम को भी...
रिल्के

इन पत्रों ने ऐसे धरातल की रचना की थी जिस पर गहन अनुभूति, विचार और लगभग एक जैसे हालात से गुजर रहे दो जन स्वस्थ, सुंदर और परिपक्व संवाद में थे. दोनों,  अकेले, दुखी और निर्वासित थे. एक निष्कासित ऑस्ट्रियन था तो दूसरी को मास्को ने उठाकर बाहर फेंक दिया था. मुश्किलों की घनघोर बारिशों ने दोनों को बस मजबूत होना सिखाया था. हालांकि ऊपर से मजबूत मारीना अंदर से रिल्के जैसी मजबूत नहीं हो पा रही थी. 

इस बीच रिल्के ने कुछ छोटे संवाद (पत्रों के जरिये) पास्तरनाक से भी किये. अनुभूति की कई पर्तें होती हैं. संभवत: यही कई पर्तें प्रेम की कई लेयर्स पर ले जाती हैं. जिन्हें नासमझने के चलते अक्सर ईष्र्या, द्वेष और पीड़ा का अनुभव होता है. रिल्के परस्तेनाक की पीड़ा को अनुभव कर रहे थे और उसे उससे मुक्त करने की कोशिश भी. 

इधर मारीना रिल्के से अपने संवादों को लेकर इस कदर आश्वस्त और प्रसन्न थी कि उसके दिनों में खुशियों का बागीचा लहलहाता था. उसका काम तेजी से आगे बढ़ रहा था और वो जीवन के दुखों का मुकाबला पहले की अपेक्षा ज्यादा ताकत से कर पा रही थी. मानो उसे कोई जादुई ताकत हासिल हो गई हो. 2 जुलाई को उसे रिल्के की ओर से एक तोहफा मिला. जिसे पाकर वह झूम उठी. यह तोहफा था रिल्के की फ्रेंच में लिखी कविताएं. इन कविताओं के लिए मारीना त्स्वेतायवा को प्रेरणा बताया गया था और उसका आभार किया गया था. 
यकीनन, मारीना के लिए यह जश्न का दिन था.

(जारी...)

11 comments:

  1. "रिल्के, मरीना और एक सिलसिला का 7 और 8 दोनों आज ही पढा। आखिर मरीना के लिए खुशी का मौका आ ही गया। बहुत सुंदर. आगे और इंतजार

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  2. बढ़िया सिरीज़ है....आगे का इन्तेज़ार है...

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  3. कि प्रेम असल में अवसाद और निराशा की ओर प्रस्थान है. वही निराशा और अवसाद जो जीवन का हासिल बन सकता है. शान्ति क्या है सिवाय मृत्यु के...सारा जीवन शांति की तलाश ही तो है. rilke great

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  4. हम दत्तचित्त हो पढ़ रहें हैं...राय बाद में बनायेंगे ..पूरा पढने के बाद..

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  5. जो लोग प्रेम में हैं उन्हें तो यह बात जरूर समझनी चाहिए...कि प्रेम असल में अवसाद और निराशा की ओर प्रस्थान है. वही निराशा और अवसाद जो जीवन का हासिल बन सकता है. शान्ति क्या है सिवाय मृत्यु के...सारा जीवन शांति की तलाश ही तो है.
    उम्मीद है तुम जीवन को समझ रही हो. प्रेम को भी...
    रिल्के


    शुक्रिया रिल्के .
    - बाबुषा

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  6. रूह एक बार जलेगी तो वह कुंदन होगी .......

    वाह ......!!

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  7. जन्मदिन की शुभकामनाएं ......

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  8. bahut badiya prastuti..
    AApko janamdin kee bahut bahut haardik shubhkamnayen!

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  9. प्रतिभा जी जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ ....

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  10. प्रतिभा जी जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ ....

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  11. This comment has been removed by a blog administrator.

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