Sunday, April 24, 2011

इक तमन्ना सताती रही रात-भर...



आपकी याद आती रही रात-भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात-भर

गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात-भर

कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात-भर

फिर सबा साय-ए-शाख़े-गुल के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात-भर

जो न आया उसे कोई ज़ंजीरे-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात-भर

एक उमीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात-भर

- फैज़ अहमद फैज़ 

6 comments:

  1. bhtrin tmnnaa hai jo staa rahi hai achchi prstuti ke liyen bdhaai. akhtr khan akela kota rajsthan

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  2. बहुत ही बेहतरीन गज़ल।

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  3. कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
    कोई तस्वीर गाती रही रात-भर
    !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  4. वाह, इसे तो बिना गुनगुनाए पढ़ना मुहाल हो गया...
    आपकी याद आती रही...

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  5. फैज़ साहब की ग़ज़ल पढ़वाने के लिए आभार.

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