आपकी याद आती रही रात-भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात-भर
गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात-भर
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात-भर
फिर सबा साय-ए-शाख़े-गुल के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात-भर
जो न आया उसे कोई ज़ंजीरे-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात-भर
एक उमीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात-भर
bhtrin tmnnaa hai jo staa rahi hai achchi prstuti ke liyen bdhaai. akhtr khan akela kota rajsthan
ReplyDeletegood...mindblowing...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन गज़ल।
ReplyDeleteकोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
ReplyDeleteकोई तस्वीर गाती रही रात-भर
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
वाह, इसे तो बिना गुनगुनाए पढ़ना मुहाल हो गया...
ReplyDeleteआपकी याद आती रही...
फैज़ साहब की ग़ज़ल पढ़वाने के लिए आभार.
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