लड़का दुनिया की फिक्रो-अलम में इस कदर उलझा रहता कि उसे कुछ भी सूझता नहीं था. उसे दुनिया भर की नाइंसाफियों पर गुस्सा आता था. वो पूरी दुनिया को नये सिरे से संवारना चाहता था. एक ऐसी दुनिया जहां इंसानियत बसती हो. जहां, धर्म, सियासत, सत्ता और अर्थ की लड़ाई इंसान को हैवान न बनाती हो. वो लड़की से ही पूछता था कि आखिर वो कुछ कर क्यों नहीं पाता? कोई कुछ कर क्यों नहीं पाता? लड़की खामोश रहती. वो बस लड़के के सवालों पर पांव धरती और लड़के की ओर चल पड़ती.
धीरे-धीरे लड़की के लिए सवालों पर पांव धरकर लड़के तक पहुंचना मुश्किल होने लगा. वो जब भी उसके करीब जाना चाहती, लड़का सवालों का रास्ता बिछा देता. लंबा रास्ता. निर्जन, वीरान, ऊबड़-खाबड़ रास्ता. लड़की उन रास्तों पर चल पड़ती. धीरे-धीरे रास्ते लंबे होने लगे. लड़की कितना भी चले, वो कभी खत्म ही नहीं होते. दूरियां बढ़ती ही जातीं. हर रोज कुछ नये सवाल उन दूरियों को बढ़ा देते. लड़की चलती ही जाती, चलती ही जाती. वो थककर बैठ जाती, तो लड़का फिर से सवाल करता तुम मेरे पास क्यों नहीं आतीं? लड़की कभी कह ही नहीं पाती कि हमारे दरम्यिान सवालों का लंबा रास्ता तुमने ही तो बिछाया है. रास्ता जो खत्म होने को ही नहीं आता. मैं तो चल ही रही हूं न जाने कब से. अब तो मैं सवालों पर पांव धरती हूं तो वे और बड़े हो जाते हैं. कितना भी चलो रास्ते खत्म ही नहीं होते.
लड़की जानती थी कि कुछ सवाल अपना जवाब खुद होते हैं. कुछ जवाब सवालों के अभाव में यूं ही भटकते फिरते हैं और कुछ सवाल जवाबों की तलाश में. सवालों के जंगल से उबरने के लिए बस चलना जरूरी है. लेकिन वो खामोश रहती. लड़की का सफर जारी रहता और लड़के का गुस्सा तारी रहता. एक दिन लड़की ने सारे रास्तों को समेट दिया. पुल बना दिया सवालों का. पुल के लिए उसे कुछ सवाल कम पड़ते, तो लड़के से पूछ लेती कुछ. जवाब के बदले लड़का उसे एक और सवाल पकड़ा देता. लड़की का काम अब आसान होने लगा. वो मुस्कुराकर लड़के से सवाल ले लेती और पुल बनाने में उसका उपयोग करती. उसका पुल पूरा होने को था. दुनिया भर के सवालों को सहेजकर उसने एक दिन पुल बना ही लिया. उस पुल को पारकर जैसे ही वो लड़के के करीब पहुंची, लड़के के सारे सवाल काफूर हो गये...
उन दोनों ने एक साथ सवालों के उस पुल को गिरते देखा...दोनों की आंखों में अब नई दुनिया के सपने एक साथ सजते थे...
सम्बन्ध तब प्रगाढ़ होता है जब एक प्रश्न श्रंखला दूसरों के उत्तरों में पहुँच जाती है।
ReplyDeletejin sawalon ke javab na mile unka pul bana liya jay.lisse voh hamesha pairo ke niche rahe.achhi kalpna hai.ladka ladki ka copyright ab aapke pass hi hai.
ReplyDelete"कुछ जवाब सवालों के अभाव में यूं ही भटकते फिरते हैं और कुछ सवाल जवाबों की तलाश में".
ReplyDeleteवाह...बहुत उम्दा बात कही है आपने...आपके लेख को पढ़ कर जगजीत सिंह की गाई एक ग़ज़ल का शेर याद आगया...
लबों से लब जो मिल गए लबों से लब ही सिल गए
सवाल गुम जवाब गुम, बड़ी हसीन रात थी
नीरज
लड़की जानती थी कि कुछ सवाल अपना जवाब खुद होते हैं. कुछ जवाब सवालों के अभाव में यूं ही भटकते फिरते हैं और कुछ सवाल जवाबों की तलाश में bahut khoob....
ReplyDeleteकालांतर में लड़का लेखक बन गया और उसने अपनी पहली किताब को समपर्ण यूं लिखा "सवालों का पुल बनाने वाली लड़की के लिए"
ReplyDelete:-)
लड़की जानती थी कि कुछ सवाल अपना जवाब खुद होते हैं. कुछ जवाब सवालों के अभाव में यूं ही भटकते फिरते हैं और कुछ सवाल जवाबों की तलाश में. सवालों के जंगल से उबरने के लिए बस चलना जरूरी है....
ReplyDeleteवाह...बहुत खूब
कितना सुन्दर लिखा है आपने
आभार
और ठीक रहता है जब सवालों का पुल ढह जाता है
ReplyDeleteइस पूरे राइटअप की सबसे बड़ी खासियत युग्म है। युग्म कहने के पीछे दो तत्वों के बीच कमाल की केमेस्ट्री का खेल है। जैसा आपने सबसे अंत में कहा कि उन दोनों ने एक साथ सवालों के उस पुल को गिरते देखा...दोनों की आंखों में अब नई दुनिया के सपने एक साथ सजते थे...। यही सपना मेरे लिए युग्म है।
ReplyDeleteBahot khoob kikha hain padh kar dil khush ho gaya. Mana kuch sawalao ke jawaab hamein maloom hote hain par phir bhi hum unka jawaab doosro se chahte hain, par kuch sawaal bina jawaab ke hi rehjaate hain jinka jawaab hum jante to hain par zaahir nahi kar paate.
ReplyDeleteBahot sundar lekh hain.Kabh kuch sawaalon ka jawaab hum jaante hain par doosro se chahte hain. kabhi kuch sawaal ke jawaab jante hain par zaaahir nahi kar paate hain.
ReplyDeletePul tootne par hi hum pass aate hain par is pul ko banane main zindagi ka achcha khasa samay nikal jata hain.