हमें फख्र है
तुम्हारे चुनाव पर साथी
कि तुमने चुनी
ऊबड़-खाबड़
पथरीली राह.
हमें खुशी है कि
तुमने नहीं मानी हार
और किया वही,
जो जरूरी था
किया जाना.
तुम्हें सजा देने के बहाने
एक बार फिर
बेनकाब हुई
न्याय व्यवस्था.
जागी एक उम्मीद कि
शायद इस बार
जाग ही जाएं
सोती हुई कौमें.
तुम्हें दु:ख नहीं है सजा का
जानते हैं हम,
तुमने तो जान बूझकर
चुना था यही जीवन.
दु:ख हमें भी नहीं है
क्योंकि जानते हैं हम भी
सच बोलने का
क्या होता रहा है अंजाम
सुकरात और ईसा के जमाने से.
हमें तो आती है शर्म
कि लोकतंत्र में
जहां जनता ही है असल ताकत
जनता ही कितनी बेपरवाह है
इस सबसे.
न जाने कितने बलिदान
मांगती है जनता
एकजुट होने के लिए,
एक स्वर में
निरंकुश सत्ता के खिलाफ
बिगुल बजाने के लिए,
खोलने के लिए मोर्चा
न जाने कितने बिनायक सेन
अभी और चाहिए.
तुम्हारे चुनाव पर साथी
कि तुमने चुनी
ऊबड़-खाबड़
पथरीली राह.
हमें खुशी है कि
तुमने नहीं मानी हार
और किया वही,
जो जरूरी था
किया जाना.
तुम्हें सजा देने के बहाने
एक बार फिर
बेनकाब हुई
न्याय व्यवस्था.
जागी एक उम्मीद कि
शायद इस बार
जाग ही जाएं
सोती हुई कौमें.
तुम्हें दु:ख नहीं है सजा का
जानते हैं हम,
तुमने तो जान बूझकर
चुना था यही जीवन.
दु:ख हमें भी नहीं है
क्योंकि जानते हैं हम भी
सच बोलने का
क्या होता रहा है अंजाम
सुकरात और ईसा के जमाने से.
हमें तो आती है शर्म
कि लोकतंत्र में
जहां जनता ही है असल ताकत
जनता ही कितनी बेपरवाह है
इस सबसे.
न जाने कितने बलिदान
मांगती है जनता
एकजुट होने के लिए,
एक स्वर में
निरंकुश सत्ता के खिलाफ
बिगुल बजाने के लिए,
खोलने के लिए मोर्चा
न जाने कितने बिनायक सेन
अभी और चाहिए.
तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी तेरे जाँ-निसार चले गये
ReplyDeleteतेरी राह में करते थे सर तलब सर-ए-राह-गुज़ार चले गये
हम सब विनायक सेन हैं…हम सब को वही सज़ा दो!
ReplyDeleteहम भी साथ साथ हैं।
ReplyDeleteसुन्दर कविता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेरणाप्रद ........ सुन्दर रचना...
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......
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