मम्ताज भाई दमित इच्छाओं, आकांक्षाओं के बीच से पनपे व्यक्तित्व की कथा है, जो सक्सेस के हाईवे पर फर्राटे से गाड़ी दौड़ाते हुए भी गांव की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों को हर पल याद करता है. मम्ताज भाई और उनकी पतंग व्यक्ति की असीम आकांक्षाओं के प्रतीक हैं जो पूरे आसमान पर उडऩा चाहती हैं. जिन्हें हमेशा पहले से तय पगडंडियों पर चलने के दबाव के चलते नोचकर फेंक दिया जाता है. मानसिक हलचल, अंतद्र्वद्व, स्वगत कथनों को मंच पर जिस खूबी से मानव ने दिखाया वह कमाल है. मंचसज्जा, पग ध्वनि, लाइट एंड साउंड के खूबसूरत उपयोग से यह नाटक जीवंत हो उठा. पोलिश थियेटर के इफेक्ट्स ने नाटक को ताजगी दी.
चुटीले संवादों ने गंभीर विषय को रोचक बना दिया. लगभग हर दूसरे दृश्य पर तालियों की गडग़ड़ाहट या हंसी की फुहार ने कलाकारों की हौसला अफजाई जारी रखी. सभी कलाकारों ने शानदार अभिनय किया. सबसे सुंदर बात रही नाटक का चुस्त संपादन. एक बार फिर मानव का जादू चल ही गया.
देखने की इच्छा हमारी भी है।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी आपने!
ReplyDeleteजब आप प्रोफेशनल होने को अपने कोकून से लड़ रहे होते हैं उस काल की रचनानाएं सबसे अधिक संभावनाओं से भरी होती है. मानव कौल की कुछ तरही रचनाएँ मैंने पढ़ी है. इनमे मम्ताज भाई पतंगवाले भी शामिल है. कहानी के तीन हिस्से है. इसको जड़, तना और शाखें की तरह विभाजन किया जा सकता है. कहानी में तीन अलग लोक है एक मुख्य पात्र के भीतर का और बाकी दो आज और बीते हुए कल के हैं.
ReplyDeleteकथा का आगाज़ बड़ा ही ज़मीनी है और इसमें उत्तरोतर स्थायी भाव आता है किन्तु बालक के मनोविकास की स्थितियां आश्चर्यजनक रूप से अविश्वसीन है. कथा एक बालक के सुपरमैन की चाह को बहुत सुन्दरता से उकेरती है. इतनी बेहतरीन बुनावट से कथा का ये भाग जीवन का भोगा हुआ यथार्थ लगता है.
फ्लेश बैक की कथा के फ्लेश बैक में लौटते हुए मैं सोचने लगता हूँ कि एक बहाने से सीट हथियाने की चतुराई वाला व्यक्ति किन हालातों में ये हुनर सीखा है. आधी रात को दुकान को आग के हवाले कर देने जैसा दुस्साहस और पतंगों के सहारे जीवनयापन करने वाले व्यक्ति का रोजी रोटी को मोहताज हो जाना, इस कथा में बम्प्स की तरह है लेकिन मैं मानव कौल से अपेक्षा रखता हूँ कि इस नाटककार ने कहानी की कमजोरियों को नाटक में प्रवेश नहीं करने दिया होगा.
आपने इस नाटक के बारे में लिखा तो मुझे अच्छा लगा. फेसबुक पर भी पंकज ने खुद के लिए अफ़सोस जाहिर किया था कि वह इसे देखने से चूक गए हैं तब भी मेरे दिल में था कि मैं अगर मुम्बई में होता तो अपने सारे काम स्थगित करके इसे देखने की कोई जुगत जरुर लगता. आपका आभार, इस पोस्ट के बहाने एक अच्छी कहानी की याद आई.
बहुत अच्छा होग यदि लखनऊ महोत्सव के नाटकों पर भी कलम चला दीजिये !!!
ReplyDeleteकहां मिलेंगे ये मम्ताज भाई पतंगवाले? देखने में न सही, स्क्रिप्ट/कथा में?
ReplyDelete@ज्ञान जी:
ReplyDeleteआप इस लिंक पर इस कहानी को पढ सकते हैं.. लेकिन इस नाटक को देखने का अपना ही मजा है.. काफ़ी खूबसूरत बिंबो का प्रयोग किया गया है..
@ gyan dutt jee यहां मिलेंगे
ReplyDeletehttp://aranyamanav.blogspot.com/2010/05/blog-post_18.html