Wednesday, June 30, 2010

अमलताश होती लड़की की कथा


अरे..अरे..अरे...इतनी तेज सीढिय़ां मत चढ़ो, गिर जाओगी.रुक जाओ...रुक जाओ...अरे रुको भी.
लड़का पीछे से चिल्लाता रहा. लेकिन लड़की के कान आज मानो सुनने के लिए थे ही नहीं. सिर्फ बालियां पहनने के लिए थे. गोल-गोल प्यारी सी बालियां. जिनमें एक छोटा सा लाल रंग का मोती भी लगा हुआ था. सुंदर सा, लटकता हुआ. जितनी तेज लड़की चलती, दौड़ती या मुड़ती वो नन्हा सा लाल मोती मानो नृत्य करने लगता. मगन हो जाता. लड़की इस सबसे बेफिकर.
अरे, सुनो तो. लड़का फिर चिल्लाया. लड़की बस ठिठकी जरा सी. पलटकर देखा उसने और मुस्कुरा दी. फिर चल पड़ी आगे को. लड़का झुंझला गया. लड़की झट से पहुंच गई छत पर और दूर लगे अमलताश की कुछ डालियां जो छत पर झुक आई थीं उनके फूलों को तोडऩे की कोशिश करने लगी. लड़का उसके साये का पीछा करते-करते वहां आया. वो गुस्से में था.
ये फूल कहीं भागे जा रहे थे क्या? जरा धीरे नहीं चला जाता तुमसे? गिर जातीं तो?
लड़की हंसी. नहीं, धीरे नहीं चला जाता मुझसे. बहुत तेज चलना चाहती हूं. इतनी तेज, इतनी तेज, इतनी तेज कि लोगों को लगे कि मैं उड़ रही हूं. काश! मेरे पांव पंख बन जाते.
लड़के ने उसकी आंखों में आकाश उतरते देखा. वो आकाश जिसमें वो उड़ रही है.
अच्छा छोड़ो ये सब. मेरी मदद करो फूल तोडऩे में. लड़के ने कोशिश की. हाथ बढ़ाये...डाल ऊपर थी काफी. उसने एक छोटी सी कूद भी लगाई लेकिन नहीं पहुंच पाया.
अरे यार, नहीं पहुंच पा रहा हूं. लड़का झुंझलाया. लड़की दूर बैठकर लड़के को देख रही थी.
कोशिश करो. को.....शि....श. लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा.
लड़का फिर कोशिश में जुट गया. बहुत कोशिश की लेकिन नहीं पहुंच पाया.
मैं वादा करता हूं, कल ढेर सारे फूल ला दूंगा. इससे अच्छे फूल. गुलाब, जलवेरा... अभी रहने देते हैं. नहीं पहुंच पा रहा हूं. सच्ची. लड़का हताश हो रहा था.
अच्छा रहने दो. लड़की ने शांत स्वर में कहा. लड़का खुश हो गया.
यहां आओ, लड़की ने बुलाया.
तुम यहां बैठो आराम से. अब मुझे देखना.
वो झट से बाउंड्री पर चढ़ गयी. बाउंड्री पर संभल-संभलकर चलते हुए वो किनारे पहुंची. वहां से उसने एक बड़ी से डंडी में फंसाकर अमलताश की पूरी बड़ी सी डाल नीचे झुका ली. हाथ में डाल पकड़े-पकड़े हुए ही वह नीचे कूद गई. लड़की की आंखों में न जाने कितने जुगनुओं की चमक थी और उसके शरीर में बिजली सी फुर्ती भी थी. लड़का हैरान.
तुम क्या हो?
लड़के ने हैरत से कहा. तुम्हें डर नहीं लगता. गिर जातीं तो?
तीसरे माले की बाउंड्री से लपक कर अमलताश तोडऩे वाली तुम अकेली ही होगी. लड़के ने झुंझलाते हुए कहा.
हां, हूं तो मैं अकेली ही. अब यहां आओ.
लड़की ने लड़के को डाल पकड़ा दी. और खुद चुन-चुनकर फूल तोडऩे लगी. देखो, ज्यादा मत झुकाना. डाल टूटनी नहीं चाहिए. लड़की ने ताकीद की.
उसने कई सारे गुच्छे डाल से उतार लिए. अब छोड़ दो. उसने लड़के को आदेश दिया और उन गुच्छों को संभालने लगा. अचानक उसे कुछ याद आया. अरे, रुको-रुको. मैं छोड़ूंगी डाल. उसने लड़के के हाथ से डाल ले ली और बेहद इत्मीनान से धीरे-धीरे डाल को छोड़ दिया. जब डाल ऊपर गयी तो ढेर सारे फूल झड़े और लड़की फूलों से नहा गयी. लड़का मुग्ध होकर उसे देखता रहा.
देखा...ये सुख बाजार से खरीदे हजारों रुपये के फूलों में भी क्या मिलता भला? लड़की ने फूलों के बीचोबीच खड़े होकर कहा.
नहीं...लड़का अब भी उसे मंत्रमुग्ध होकर देख रहा था.
लड़की के दुपट्टे में सिमटे हुए फूल अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. अब लड़की इत्मीनान से बैठ गई. अमलताश की एक डाल को उसने अपने जूड़े में लगा लिया. दूसरी डाल को मोड़कर उसने कंगन बनाया. दाहिने हाथ, फिर बायें हाथ में. फिर बड़ा कंगन गुलबंद बना. अब हार की बारी थी. छोटा हार, फिर बड़ा हार. करधनी, पायल एक-एक कर पूरा श्रृंगार होने लगा. कुछ ही पलों में लड़की अमलताश का पेड़ बन गई. वो धीरे-धीरे उठी. गोल गोल घूमने लगी. कथक की मुद्रायें हौले-हौले आकार लेने लगीं. अप्रतिम न$जारा लड़के की आंखों के सामने था. वो लड़की नृत्य कर रही थी या अमलताश का पेड़? लग रहा था अमलताश के पेड़ ने लड़की की देह में जन्म लिया था.
अगर तुम न होते तो मैं इतनी खुश कभी न होती...लड़की भाव-विभोर होने लगी. उसकी आंखें भर आयीं. उसने लड़के के कंधे पर सर टिकाकर कहा, मेरे जीवन के सारे सुख तुमसे हैं, सिर्फ तुमसे. लड़की की आवाज गीली होने लगी थी. ये लड़कियां जब खुश होती हैं तो रोने क्यों लगती हैं लड़के ने मन ही मन सोचा लेकिन खामोश रहा. वो अपने कंधे पर अमलताश को महसूस कर रहा था.
मेरा जीवन एक उजाड़ बियाबान ही तो था. तुमने ही तो इसे नया रंग-रूप दिया. लड़की फफक पड़ी. लड़का शांत रहा. वो अब जान चुका था कि लड़की जब भी, जो भी करती है बहुत करती है. अब उसे खुलकर रो लेने देना ही बेहतर है. उसने उसे चुप कराने की कोशिश नहीं की.
शाम ने दिन से हाथ छुड़ा लिया था. रात उन दोनों के सर पर मंडरा रही थी. लड़की रोये जा रही थी. तुम्हें याद है, जब तुम आये थे मिलने पहली बार. कितनी नर्वस थी मैं. इतनी कि वो सब कहा जो कहना नहीं चाहती थी. वो सब किया जो करना नहीं चाहती थी. कितनी नर्वस थी मैं. होता कोई और तो न जाने क्या का क्या समझ लेता. मैं मूढ़मति जाने किस दुनिया में थी. तुम गये तो होश आया. होश आया तो लगा कि तुम नहीं गये चले गये सुख भी सारे. लड़की की आंखों में अतीत तैर रहा था. उसने अतीत को खींचकर वर्तमान में मिला लिया था.
उसकी आंखों में छलके आंसुओं को भी मानो उसके अतीत को जानने की इच्छा जाग उठी थी. वे टुकुर-टुकुर लड़की का मुंह देख रहे थे. लेकिन तुमने ऐसा कुछ भी नहीं किया. तुममें....हां सिर्फ तुममें ही तो थी ये ताकत कि जो कहा जा रहा है, उसे न समझे बल्कि जो कहने की इच्छा है उसे समझ ले. मेरे शब्दों में कहां उलझे थे तुम. अपने होने का अहसास कभी भी तुमने कम नहीं होने दिया. कभी भी नहीं.
कैसे किया तुमने ऐसा...?
लड़की अचानक प्रश्न बन गई. लड़का इसके लिए तैयार नहीं था.
जानती हूं तुमने जानकर कुछ नहीं किया. तुम हो ही ऐसे. प्यारे से. है ना? लड़की ने पलकें झपकायीं. लड़के को लगा उसके बारे में नहीं किसी और के बारे में बात हो रही है.
यार, तुम लड़कियों की एक आदत बहुत खराब होती है. जिसे चाहती हो उसे देवता बनाकर रख देती हो. ऐसा तो कुछ नहीं किया मैंने.
हां, ठीक कह रहे हो तुम. हम लड़कियां ऐसी ही होती हैं. जिसे प्यार करती हैं उसे जी-जान से प्यार करती हैं. और जो कोई हमारी भावनाओं को वैसा का वैसा समझ ले तो कहना ही क्या. उसे तो प्यार का देवता ही बना देते हैं. अब ये हमारी गलती है, तो है. लड़की ने मुस्कुराकर अपने कान पकड़ लिये. लड़के की आंखें भर आयीं. तुम ऐसा मत किया करो. मुझे अच्छा नहीं लगता. कभी-कभी डर लगता है. लगता है कि तुम मुझे कुछ ज्यादा ही अच्छा समझ रही हो.
ऐसा नहीं है. लड़की ने आत्मविश्वास से कहा. ऐसा बिल्कुल नहीं है. तुम अच्छे हो इसलिए हम तुम्हें प्यार करते हैं ये तुमसे किसने कहा. तुम सच्चे हो इसलिए हम तुमसे प्यार करते हैं. प्यार के लिए किसी का बहुत अच्छा होना जरूरी नहीं होता, जरूरी होता है जो जैसा है उसे उसके स्वाभाविक रूप में पसंद करना. जैसा तुमने मुझे किया. वरना क्या था मुझमें?
लड़की के चेहरे के भाव बदलने लगे. ऐसा नहीं है. क्या नहीं है तुममें. जो तुम्हें प्यार न करेगा वो निरा मूढ़ होगा. ऐसा नहीं है...लड़की की आंखें छलक उठीं.
मुझे कोई प्यार नहीं करता. कोई भी नहीं. कहते सब हैं कि वो मुझे प्यार करते हैं लेकिन मैं जानती हूं कि मुझे कोई प्यार नहीं करता. तुम करते हो. वर्ना मेरी तमाम बेवकूफियों के बावजूद तुम भला क्यों प्यार करते मुझे. और तुम कोई सवाल भी नहीं करते मुझसे. विश्वास करते हो. कोई पुरुष स्त्री पर इतना विश्वास करे कि कभी कुछ पूछताछ ही न करे, उसकी हर बेवकूफी का कारण खुद ही समझ ले और उन बेवकूफियों को भी प्यार करे, ये आसान नहीं. तुम खास हो. बहुत खास. लड़की ने आंखें मूंद लीं. वो लड़के की उपस्थिति को अपने भीतर महसूस करने लगी. बेहद करीब.
प्यार की उस रात में हजारों तारे खिलने लगे आसमान पर. हवाओं में संगीत गूंजने लगा. लड़की की मुस्कुराहट पूरी फिजां में तैरने लगी. दुनिया भर का दुख, पीड़ा, संत्रास उसकी मुस्कुराहट में पनाह लेने लगे. धीरे-धीरे लड़की ने आंखें खोलीं...वहां कोई नहीं था... दूर-दूर तक कोई नहीं...

25 comments:

  1. बहुत उम्दा..प्रवाहमय...अच्छा लगा पढ़कर..

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  2. लग तो रही है लघु कथा ही सी मगर कुछ लम्बी हो चली है!

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  3. कहानी की एक एक पंक्ति पर दाद देने को जी मचलता रहा. मैंने पंक्तियों को चुनना आरम्भ किया और आधे सफ़र में ही जिस तरह लड़की अमलताश में बदल गई थी वैसे ही मैं आपकी कहानी में तब्दील हो गया. भीतर के संवेदन को खिला गई पंक्तियों को लिखने बैठूँगा तो आपकी कहानी में क्या छूटेगा ये समझ नहीं आ रहा.

    लड़की जिन चीजों से सजीव होती है उनसे इतर लड़की के कान की बालियाँ भी सजीव हो उठी है. यह कहानी के सौन्दर्य का अमिट प्रभाव बन जाता है. ख़ुशी को जताने के लिए ख़ुशी लिखना पर्याप्त होता होगा मगर आपकी इस कहानी में ख़ुशी को निर्जीव वस्तुओं से छलकते देखा है. ऐसे अनुभव मेरे पठन में कम ही हैं.

    कहानी को पढ़ते हुए मैंने अपने भीतर कुछ प्रस्फुटित होते पाया, उसे खिलते हुए देखा फिर वह अपने सम्पूर्ण आकर में मेरे सम्मुख था और अंत में किसी बड़े स्पेस में बदल कर सब कुछ सूना कर गया.

    आपको बहुत बधाई देना चाहता हूँ इस कहानी के लिए कि आज मैं 'नदी हो गई लड़की' से कुछ आज़ाद हुआ हूँ और अब अमलताश के फूलों से घिरा हूँ.

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  4. प्रतिभा जी ,

    आपकी यह कहानी मन में घर कर गयी....बस ऐसे हसीं पल ख़्वाबों में ही नसीब होते हैं.....अंत बहुत सटीक है .

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  5. Wow
    Superb !!

    Its too Romantic......

    lagta hai mujhe kuchh purani post aur padhni padengi.

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  6. बहुत बहुत ही खूबसूरत कहानी। मन पता नहीं कहां खो गया इसे पढकर।

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  7. बहुत ही करूण और रूमानी .....

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  8. मैं तो इसे कविता की तरह पढता चला गया. एकदम रूमानी. प्यार से भरपूर. काश हम भी इस प्यार को आपकी नजर से देख पाते. शानदार.

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  9. बहुत ही प्यारी कहानी।
    जिस कहानी में प्यार शब्द जुड़ जाता है वह प्यारी तो बन ही जाती है और फिर आपने लिखा भी तो बड़ा प्यारा है न
    ये प्यार भी कितना प्यारा होता है न।

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  10. बेहद प्यारी कहानी ...मासूम सी ..कुछ मिश्री सी घुली मेरे एहसासों में

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  11. शुरू से अंत तक एक आकर्षण..मैं पहली बार आपके ब्लॉग पर आया ..बढ़िया लगा आपकी रचनाओं को पढ़ कर...सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई

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  12. हम लड़कियां ऐसी ही होती हैं. जिसे प्यार करती हैं उसे जी-जान से प्यार करती हैं. और जो कोई हमारी भावनाओं को वैसा का वैसा समझ ले तो कहना ही क्या. उसे तो प्यार का देवता ही बना देते हैं.
    bahut sundar kahani...ek ladki ko jaane kitna jee gayeen hain aap yahan..lagbhag poora.

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  13. बहुत सुन्दर कहानी. अंत तो स्तब्ध कर गया.

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  14. वाकई हम लडकिया ऐसी ही होती है ..........................अपनी सी लगी कहानी

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  15. bhai wah...ap aise hi likhengi to mai bhi 'padhne' lagoonga ...please aisa na kariye...mai aisa hi thik hoon...kisi se kahiye ki mujhe ap ke blog pe aane se rok de...kambakht koi milta hi nahi...

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  16. प्रतिभा जी आज जाना की आपकी लेखनी कितनी बेहतरीन है। काश, इसका एक प्रतिशत भी सीख सकूं। मैं आपको जानता हूं इसलिए यह बात नहीं कर रहा हूं। बात यही है कि आपकी लेखनी जोरदार है। बेहतरीन रचना।

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  17. प्रतिभा जी सुंदर रचना. कहानी पढ़ कर लगा जैसे प्यार करना ज़रूरी है. कम से कम इस मतलबी दुनिया में प्यार तो बिना मतलब के किया ही जा सकता है.

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  18. प्रतिभा जी सुंदर रचना. संवेदनाओं के साथ कहानी अपने पूरे प्रवाह में आगे बड़ी है...

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  19. कुछ है नही कहने को.. बस आपकी कहानी को जी रहा हू.. पहली बार आया हू, पुरानी भी देखनी होगी..

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  20. मुझे तो ये अमलतास मुग्ध कर गया!

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  21. Spicy, Interesting and Real Love story Shared by You. Thank You For Sharing.

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  22. I felt very good after reading this love story. The love story written on this post is very good. Nice post. I have also read a love story post which will bring tears to my eyes.

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