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असली इन्सान की तरह जियेंगे
कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं
नहीं, मेरे तूफानी मन को यह नहीं स्वीकार
मुझे तो चाहिए एक महान ऊंचा लक्ष्य
और उसके लिए
उम्र भर संघर्षों का अटूट क्रम
ओ कला! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोशों के द्वार
मेरे लिए खोल
अपने प्रज्ञा और संवेगों के आलिंगन में
अखिल विश्व को बांध लूँगा मैं
आओ
हम बीहड़ और सुदूर यात्रा पर चलें
आओ, क्योंकि हमें स्वीकार नहीं
छिछला निरुदेश्य और लक्ष्यहीन जीवन
हम ऊंघते, कलम घिसते
उत्पीडन और लाचारी में नहीं जियेंगे
हम आकांचा, आक्रोश, आवेग और
अभिमान से जियेंगे.
असली इन्सान की तरह जियेंगे.
- कार्ल मार्क्स
बहुत ही बेहतर...
ReplyDeleteशब्द बहुत कुछ कहते हुए... वैसे मनुष्य पर मनुष्य के उत्पीडन और लाचारी के खिलाफ़ असली इंसान के जंग के बिगुल की बहुत बेहतर पंक्तियां हैं यह ।
आवेग और अभिमान से जियेंगे.
ReplyDeleteअसली इन्सान की तरह जियेंगे.
महान क्रांति के जनक मार्क्स कों शत शत नमन
उस महान विभूति को नमन जिस ने दुनिया को बदलने का दर्शन दिया।
ReplyDeleteकार्ल मार्क्स की कविता पढवाने के लिये धन्यवाद्
ReplyDeletenice
ReplyDeleteअच्छा याद किया उनके जन्म दिवस के दिन!
ReplyDeleteउनको प्रणाम।
ReplyDeleteइस कविता को यहां लगाने के लिये बहुत-बहुत आभार…ज़िंदगी ऐसे ही जीने के लिये होती है।
ReplyDeleteहम ऊंघते, कलम घिसते उत्पीडन और लाचारी में नहीं जियेंगे हम आकांछा, आक्रोश, आवेग और अभिमान से जियेंगे.
ReplyDelete...काल मार्क्स को याद करने का यह अंदाज़ अच्छा लगा.
aaj bahut dino baad aapka blog dekha, behut hi sunder duniya hai ye. aur is kavita ko dene ke liye bahut bahut dhanyavad/
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