Sunday, April 25, 2010

तुम कोई रस्‍म निभाने के लिए मत आना

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना।
मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं,
दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं,
हसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना.
प्यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं,
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना।
अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई.
तुम कोई रस्‍म निभाने के लिए मत आना...
- जावेद अख्तर

11 comments:

  1. अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना...

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  2. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. Pahali baar aapke blogpe aayi..pahali baar Javedji ki yah gazal padhi...behad khoobsoorat chunav hai aapka!

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  4. aur iske theek ulat faraaz saab kahte hain ki ..

    ranjish hi sahi dil hi dukhane ke liye
    aa fir se mujhes chhod ke jane liye

    pahle se marasim na shi fir bhi kabhi to
    rasm o rah e duniya hi nibhane ke liye.. :)

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  5. akhtar sahib ki ek behtar rachna. badhai

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