पार किए
विन्ध्य से लेकर हिमालय तक
न जाने कितने पहाड़,
पार की गंगा से वोल्गा
और टेम्स तक
न जाने कितनी नदियां.
बड़ी आसानी से
पार हो गए सारे बीहड़ जंगल,
मिले न जाने कितने मरुस्थल भी
राह में
लेकिन कर लिए पार वे भी
प्यार से...
बस एक चुप ही
नहीं हो पा रही है पार...
बस एक चुप ही
ReplyDeleteनहीं हो रही है पार...
बड़ी अच्छी बात कही ..प्रतिभा
बहुत सुंदर भाव।
ReplyDeleteजाकिर अली रजनीश
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सिर पर मंडराता अंतरिक्ष युद्ध का खतरा।
परी कथाओं जैसा है इंटरनेट का यह सफर।
man ko chhoo gaya
ReplyDeleteबिल्कुल सही लिखा है-
ReplyDeleteएक चुप सौ को हराये!
बस एक चुप ही
ReplyDeleteनहीं हो रही है पार...
सुन्दर भावप्रद रचना!
बस एक चुप ही नहीं हो पा रही है पार...'
ReplyDeleteबहुत सम्वेदनशील और सूक्ष्म कविता
एहसास की सुन्दर कविता
Kya baat hai
ReplyDeleteलेकिन मैं चुप नहीं हूं...!
ReplyDeletekya aapne Kashinath Singhji ka koi interview liya hai? Ya koi kam un par? Main ek patrika ka ank un par prakashit kar raha hoon. Madad chahiye.
ReplyDeletepallavkidak@gmail.com
09414732258