एक मौसम आसमान से उतर रहा था। एक मौसम शाखों पर खिल रहा था। एक मौसम पहाड़ों से उतर रहा था। एक मौसम रास्तों से गुजर रहा थाएक मौसम शानों पर बैठ चुका था कबका। एक मौसम आंखों में उतर रहा था आहिस्ता-आहिस्ता।
एक मौसम दहलीज पर बैठा था अनमना सा, एक मौसम साथ चल रहा था हर पल। न धूप... न छांव...न बूंदें... न ओस...न बसंत...न शरद बस एक याद ही है जो हर मौसम में ढल रही हैऔर लोग कह रहे हैं कि मौसम बदल रहे हैं...
एक मौसम दहलीज पर बैठा था अनमना सा, एक मौसम साथ चल रहा था हर पल। न धूप... न छांव...न बूंदें... न ओस...न बसंत...न शरद बस एक याद ही है जो हर मौसम में ढल रही हैऔर लोग कह रहे हैं कि मौसम बदल रहे हैं...
आपका लेख पढकर एक ही शब्द निकला वह यह है .............वाह!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत है यह बदलाव।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
VAAH ..... HAR MOUSAM MEIN EK YAAD HI DHAL RAHI THEE ....
ReplyDeleteBAHOOT LAJAWAAB ......
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ReplyDeleteबहुत खूब.........!
ReplyDeleteमौसम का बढ़िया विश्लेषण किया है!
Ne dhoop,ne chav,ne bude,ne oose,ne basant,ne sharad- bas ek yaad hi hai jo har mausam mein dhal rahi hai.
ReplyDeleteBahut Sunder
दुनिया में कुछ भी अपरिवर्तनीय नही है!
ReplyDeleteबहुत खूब
anmana sa mausam jitna khubsurat hai utna hi khatakta hai uska dahleej per baithe rhna.use bhi bheeter uterne deejiye.ho sakta hai who mausam aapke liye nayi kavita ban ker aaye.
ReplyDeletebeautiful...!!
ReplyDeleteहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
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