Thursday, October 22, 2009

तेरी जीत में मेरी हार है

कैसे अपने दिल को मनाऊं मैं,
कैसे कह दूं कि तुझसे प्यार है,
तू सितम की अपनी मिसाल है,
तेरी जीत में मेरी हार है।

तू तो बांध रखने का आदी है,
मेरी सांस-सांस आजादी है,
मैं जमीं से उठता वो नग्मा हूं,
जो हवाओं में अब शुमार है।

मेरे कस्बे पर, मेरी उम्र पर,
मेरे शीशे पर, मेरे ख़्वाब पर
ये जो पर्त-पर्त है जम गया,
किन्हीं फाइलों का गुबार है।

इस गहरे होते अंधेरे में,
मुझे दूर से जो बुला रही,
वो हंसी सितारों की जादू से भरी,
झिलमिलाती कतार है।

ये रगों में दौड़ के थम गया,
अब उमडऩे वाला है आंख से,
ये लहू है जुल्म के मारों का
या फिर इंकलाब का ज्वार है।

वो जगह जहां पे दिमाग से
दिलों तक है खंजर उतर गया,
वो है बस्ती यारों खुदाओं की,
वहां इंसा हरदम शिकार है।

कहीं स्याहियां, कहीं रोशनी,
कहीं दोजख़ और कहीं जन्नतें
तेरे दोहरे आलम के लिए,
मेरे पास सिर्फ नकार है।
- गोरख पांडे

12 comments:

  1. इस गहरे होते अंधेरे में,
    मुझे दूर से जो बुला रही,
    वो हंसी सितारों की जादू से भरी,
    झिलमिलाती कतार है।
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ है,सच्चाई से अपनी ओर खींचती सी प्रतीत होती हैं।

    ReplyDelete
  2. pandeyji ki ek umda rachna aapne padhne ke liye uplabdh karayee, dhanywad.

    ReplyDelete
  3. गोरख पाण्डे जी की रचना पढ़वाने का आभार.

    ReplyDelete
  4. कमाल खोजकर लाईं आज तो।
    कहीं स्याहियां, कहीं रोशनी,
    कहीं दोजख़ और कहीं जन्नतें
    तेरे दोहरे आलम के लिए,
    मेरे पास सिर्फ नकार है।
    आज कौन कह पाता है ऐसा::।

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर रचना प्रेषित की है। आभार।

    वो जगह जहां पे दिमाग से
    दिलों तक है खंजर उतर गया,
    वो है बस्ती यारों खुदाओं की,
    वहां इंसा हरदम शिकार है।

    ReplyDelete
  6. अच्‍छी रचना है .. पढाने के लिए धन्‍यवाद !!

    ReplyDelete
  7. कहीं स्याहियां, कहीं रोशनी,
    कहीं दोजख़ और कहीं जन्नतें
    तेरे दोहरे आलम के लिए,
    मेरे पास सिर्फ नकार है।

    गोरख पाण्डेय जी की लेखनी प्रखर है।
    उनको बधाई!
    आपका आभार!

    ReplyDelete
  8. Gorakh Pandey ki har ek pankti dil ko chou gaye

    Rohit Kaushik

    ReplyDelete
  9. वो जगह जहां पे दिमाग से
    दिलों तक है खंजर उतर गया,
    वो है बस्ती यारों खुदाओं की,
    वहां इंसा हरदम शिकार है।

    गोरख पाण्डेय की इतनी सुन्दर रचना सुनाने का बहुत आभार ..!!

    ReplyDelete
  10. गोरख जी को बधाई!

    ReplyDelete
  11. बहुत कठिन जीवन के लिए बहुत सरल दृष्टि है जो साफ़ कहने की आदत से खुश है. बहुत सुंदर रचना पढ़वाने का आभार !

    ReplyDelete