कैसे अपने दिल को मनाऊं मैं,
कैसे कह दूं कि तुझसे प्यार है,
तू सितम की अपनी मिसाल है,
तेरी जीत में मेरी हार है।
तू तो बांध रखने का आदी है,
मेरी सांस-सांस आजादी है,
मैं जमीं से उठता वो नग्मा हूं,
जो हवाओं में अब शुमार है।
मेरे कस्बे पर, मेरी उम्र पर,
मेरे शीशे पर, मेरे ख़्वाब पर
ये जो पर्त-पर्त है जम गया,
किन्हीं फाइलों का गुबार है।
इस गहरे होते अंधेरे में,
मुझे दूर से जो बुला रही,
वो हंसी सितारों की जादू से भरी,
झिलमिलाती कतार है।
ये रगों में दौड़ के थम गया,
अब उमडऩे वाला है आंख से,
ये लहू है जुल्म के मारों का
या फिर इंकलाब का ज्वार है।
वो जगह जहां पे दिमाग से
दिलों तक है खंजर उतर गया,
वो है बस्ती यारों खुदाओं की,
वहां इंसा हरदम शिकार है।
कहीं स्याहियां, कहीं रोशनी,
कहीं दोजख़ और कहीं जन्नतें
तेरे दोहरे आलम के लिए,
मेरे पास सिर्फ नकार है।
- गोरख पांडे
कैसे कह दूं कि तुझसे प्यार है,
तू सितम की अपनी मिसाल है,
तेरी जीत में मेरी हार है।
तू तो बांध रखने का आदी है,
मेरी सांस-सांस आजादी है,
मैं जमीं से उठता वो नग्मा हूं,
जो हवाओं में अब शुमार है।
मेरे कस्बे पर, मेरी उम्र पर,
मेरे शीशे पर, मेरे ख़्वाब पर
ये जो पर्त-पर्त है जम गया,
किन्हीं फाइलों का गुबार है।
इस गहरे होते अंधेरे में,
मुझे दूर से जो बुला रही,
वो हंसी सितारों की जादू से भरी,
झिलमिलाती कतार है।
ये रगों में दौड़ के थम गया,
अब उमडऩे वाला है आंख से,
ये लहू है जुल्म के मारों का
या फिर इंकलाब का ज्वार है।
वो जगह जहां पे दिमाग से
दिलों तक है खंजर उतर गया,
वो है बस्ती यारों खुदाओं की,
वहां इंसा हरदम शिकार है।
कहीं स्याहियां, कहीं रोशनी,
कहीं दोजख़ और कहीं जन्नतें
तेरे दोहरे आलम के लिए,
मेरे पास सिर्फ नकार है।
- गोरख पांडे
इस गहरे होते अंधेरे में,
ReplyDeleteमुझे दूर से जो बुला रही,
वो हंसी सितारों की जादू से भरी,
झिलमिलाती कतार है।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ है,सच्चाई से अपनी ओर खींचती सी प्रतीत होती हैं।
pandeyji ki ek umda rachna aapne padhne ke liye uplabdh karayee, dhanywad.
ReplyDeleteगोरख पाण्डे जी की रचना पढ़वाने का आभार.
ReplyDeleteकमाल खोजकर लाईं आज तो।
ReplyDeleteकहीं स्याहियां, कहीं रोशनी,
कहीं दोजख़ और कहीं जन्नतें
तेरे दोहरे आलम के लिए,
मेरे पास सिर्फ नकार है।
आज कौन कह पाता है ऐसा::।
बहुत सुन्दर रचना प्रेषित की है। आभार।
ReplyDeleteवो जगह जहां पे दिमाग से
दिलों तक है खंजर उतर गया,
वो है बस्ती यारों खुदाओं की,
वहां इंसा हरदम शिकार है।
gorakh pande ki rachna ke liye aabhar.
ReplyDeleteअच्छी रचना है .. पढाने के लिए धन्यवाद !!
ReplyDeleteकहीं स्याहियां, कहीं रोशनी,
ReplyDeleteकहीं दोजख़ और कहीं जन्नतें
तेरे दोहरे आलम के लिए,
मेरे पास सिर्फ नकार है।
गोरख पाण्डेय जी की लेखनी प्रखर है।
उनको बधाई!
आपका आभार!
Gorakh Pandey ki har ek pankti dil ko chou gaye
ReplyDeleteRohit Kaushik
वो जगह जहां पे दिमाग से
ReplyDeleteदिलों तक है खंजर उतर गया,
वो है बस्ती यारों खुदाओं की,
वहां इंसा हरदम शिकार है।
गोरख पाण्डेय की इतनी सुन्दर रचना सुनाने का बहुत आभार ..!!
गोरख जी को बधाई!
ReplyDeleteबहुत कठिन जीवन के लिए बहुत सरल दृष्टि है जो साफ़ कहने की आदत से खुश है. बहुत सुंदर रचना पढ़वाने का आभार !
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