केदारनाथ सिंह
कुछ
जिसे डाकिया कभी नहीं लाता
कुछ जो दिन भर गिरता रहता है
मकानों की छतों से धूल की तरह.
कुछ-जिसे पकडऩे की जल्दी में
बसें छूट जाती हैं,
चाय का प्याला मे$ज पर धरा रह जाता है
और शहर में होने वाली हत्या की खबर
चौंकाती नहीं
न आघात देती है।
सिर्फ आदमी उठता है
और अपनी कंघी को उठाकर
शीशे के और करीब रख देता है
कुछ, जिसके लिए
सारी पेंसिलें रोती हैं नींद में
और सड़क के दोनों किनारों के मकान
बिना किसी शब्द के
बरसों तक खड़े रहते हैं
एक ही सीध में।
Kedar ke Saral Se Kavitao Mein Gahara Arthbodh Hai.
ReplyDeleteThanks for Kedar Kavita
Rohit Kaushik
सुन्दर ..
ReplyDeleteगणेश उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।
This is called 'waiting for Godot'. Hope u've read this play by Beckett !
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteगणेश उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ...
केदारनाथ सिंह की यह रचना प्रस्तुत करने का आभार.
ReplyDeleteसुन्दर रचना का चयन किया है आपने,
ReplyDeleteप्रतिभा जी !
आपकी दुनियां में वैविध्य का सौन्दर्य है !
शुभकामनाएं !
achhi kavita hai
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteतेज धूप का सफ़र