वैसे तो इन दिनों ऐसे लोग ही कम मिलते हैं जो यह पूछें की अच्छा कैसे लिखा जाए क्योंकि इन दिनों हर किसी को यही लगता है की वो सर्वश्रेष्ठ लिखता है। फ़िर भी कभी किसी चेहरे पर कप्पुस के सवाल नज़र आते हैं तो अच्छा लगता है। जब सवाल कप्पुस के से हों तो जवाब भी रिल्के का ही होना चहिये।
'एक ही काम है जो तुम्हें करना चाहिए - अपने में लौट जाओ। उस केन्द्र को ढूंढो जो तुम्हें लिखने का आदेश देता है। जानने की कोशिश करो कि क्या इस बाध्यता ने तुम्हारे भीतर अपनी जड़ें फैला ली हैं ? अपने से पूछो कि यदि तुम्हें लिखने की मनाही हो जाए तो क्या तुम जीवित रहना चाहोगे ?...अपने को टटोलो...इस गंभीरतम ऊहापोह के अंत में साफ-सुथरी समर्थ 'हाँ'' सुनने को मिले, तभी तुम्हें अपने जीवन का निर्माण इस अनिवार्यता के मुताबिक करना चाहिए।'
'एक ही काम है जो तुम्हें करना चाहिए - अपने में लौट जाओ। उस केन्द्र को ढूंढो जो तुम्हें लिखने का आदेश देता है। जानने की कोशिश करो कि क्या इस बाध्यता ने तुम्हारे भीतर अपनी जड़ें फैला ली हैं ? अपने से पूछो कि यदि तुम्हें लिखने की मनाही हो जाए तो क्या तुम जीवित रहना चाहोगे ?...अपने को टटोलो...इस गंभीरतम ऊहापोह के अंत में साफ-सुथरी समर्थ 'हाँ'' सुनने को मिले, तभी तुम्हें अपने जीवन का निर्माण इस अनिवार्यता के मुताबिक करना चाहिए।'
आपका यह पोस्ट पढकर लिखने और न लिखने की दुश्वारियों में जिस ब्लागर भाई को फंसना है फंसे। मैं तो यह कहते हुए पार पाना चाहता हूं कि-
ReplyDeleteकभी झरना कभी दरिया कभी समन्दर सा
जहन में उठता है अकसर कोई बवंडर सा
अपनी औकात से बाहर निकल जाता है
कितना कमजर्फ है गुब्बारा एक सुंदर सा।
लेखकीय विचारों का बवंडर पैदा करने का शुक्रिया--