आसमान इतना साफ़ कभी नहीं लगा। जैसे अभी-अभी धोकर सुखाया गया हो जैसे-जैसे हम शहरों से दूर जाते हैं आसमान, हवा, नहरें, सब ज्यादा साफ़ होते जाते हैं। मन भी। उस रोज का आसमान अगर ज्यादा साफ़ लग रहा था तो इसके कई पर्यावरण के कारण तो थे ही साथ ही मन का साफ़ होना भी एक कारन था। दूर-दूर तक फैले गेहूं के खेतों के बीचोबीच खड़े होकर आसमान देखने का मौका ही कितना मिलता है। अब इस आसमान में एक और द्रश्य था जो इसे कमाल का बना रहा था। इस छोर से उस छोर तक फैले आसमान पे चाँद और सूरज को आमने सामने आते देखना खूबसूरत था। मानो सूरज जाने को तैयार न हो और चाँद पहले से आ धमका हो। उनकी इस लडाई का गवाह बन रहा था ख़ुद आसमान और वो नहर जिसमे चाँद और सूरज का अक्स झांक रहा था। पूरनमाशी का ये चाँद होली का चाँद था। खूब ujla ....खूब साफ ....
Aaj kal har kahin Chand ki rushwai ki charcha hai ..........Achlendra
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