Thursday, February 12, 2009

दूरियां

मैं सोचता
रहाऔर दूर चला आया
मैं दूर चला आया
और सोचता रहा
तुम सोचती रहीं

और दूर चली गईं
तुम दूर चली गईं
और सोचती रहीं
इस तरह हमने तय की दूरियां।

- मंगलेश डबराल

2 comments:

  1. डबराल जी ने अपनी रचना में " बढ़ते अन्तराल" को बहुत अच्छे तरीके से व्यक्त किया है प्रतिभा जी
    - विजय

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  2. mai samjhata raha
    wo samjhati rahi
    is samjhane samjhane me
    hame samajh bhi a gaya...
    IS TARAH KAVITA SAMJH ME AAYI.

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