Sunday, January 18, 2009

बेमकसद कुछ भी नहीं

कभी -कभी अचानक, यूं ही कुछ बहुत स्पेशल हो जाता है हमारी लाइफ में, जिसका हमें अंदाजा तक नहीं होता। जैसे कुछ खास लोगों से मुलाकात हो जाना, एक रांग नंबर पर किसी राइट पर्सन से गुफ्तगू हो जाना, रास्ता भटकने पर एक नया और ज्यादा माकूल रास्ता खोज लेना॥और भी बहुत कुछ है जो हमारी लाइफ में बस यूं ही हो जाता है. लेकिन इस यूं ही के घट जाने के बाद आप इसकी इंपॉर्टेस समझ पाते हैं. ब्लॉग सर्फिंग का यह सिलसिला जब शुरू हुआ तो अंदाजा नहीं था कि यह कितने क्रिएटिव व‌र्ल्ड से, लोगों से, उनके थॉट्स से रू-ब-रू होने का सिलसिला शुरू होने जा रहा है. इस बार ऩजर पड़ी अजय गर्ग के ब्लॉग http://bema,1,1sad.blogspot.com पर. चंडीगढ़ के अजय की तबियत और तरबियत दोनों ही उन्हें टिपिकल जर्नलिस्ट होने से अलग करती है. देर तक रजाई में सोने का मजा लेने वाले अजय जब देश, दुनिया और समाज को लेकर कांशस होते हैं तो कई सवाल छोड़ते हैं. फोटोग्राफी में अगर आपको इंट्रेस्ट नहीं है तो इस ब्लॉग पर आकर यह इंट्रेस्ट डेवलप हो सकता है. तस्वीर सिर्फ वो नहीं होती जो दिखती है, तस्वीर को अगर हम गौर से देखें तो यह डिफरेंट डायमेंशन्स को शो करती है. अजय अपने ब्लॉग पर वह आंख देते हैं, जिससे हम उन डायमेंशन्स को समझ सकते हैं. अजय के ही शब्दों में धूप भी वही है, परछाइयां भी वही हैं, फर्क सिर्फ उस ऩजर का है जो इसे देखती है और धूप-छांह के बीच बुने रंगों की एक तस्वीर के रूप में रचना कर डालती है. ब्राजीलिया के स्टीफन हरबर्ट की तस्वीरों के जरिये अजय अपनी बात को प्रमाणित करते हैं. लाइफ के डिफरेंट शेड्स को उनकी प्योर फील के साथ अपने ब्लॉग पर सजाया है ब्लॉगर ने. चाहे वो क्रिकेट के मैदान पर बनते इतिहास को देखने का लम्हा हो या हंगरी की फिल्म फेटलेस पर उनकी राय सबकुछ बेहद तरतीब से परोसा गया है. अगर किसी को घूमने का शौक है, तो उसके लिए कई खूबसूरत सजेशन्स इस ब्लॉग पर हैं कि जिंदगी में एक बार कहां जरूर जाएं. कहीं पढ़ा था कि हर क्रिएटिव व्यक्ति में कहीं न कहीं कवि जरूर छिपा होता है. कोई डायरी के पन्नों में छुपा संकोची कवि होता है तो कोई मंच पर जमा कवि. कविता के कीटाणुओं ने अजय को भी बख्शा नहीं है. इस ब्लॉगर के डिफरेंट डायमेंशन्स को जानने के लिए जब उनके दूसरे ब्लॉग http://indiancafeteria.blogspot.com का रुख़्ा किया तो कई सुंदर और काम की चीजें हाथ लगीं. मसलन इंडियन वुमन को समझने की समझ बड़ी साफ सी दिखती है. लिव इन रिलेशनशिप के बहाने सोसायटी का असल चेहरा सामने लाते हैं ब्लॉगर. इस ब्लॉग की ऑलमोस्ट हर पोस्ट अपने पास रोकती है. कंटेट खत्म होने के बाद खत्म नहीं होता, वो हमारे भीतर और डेवलेप होता जाता है. लिखना इसी का नाम है. बेमकसद शुरू हुआ अजय का यह सिलसिला असल में अब बामकसद हो चुका है. इस संडे क्यों न इस बेमकसद को ही मकसद बनाकर देखा जाए.

आज आई नेक्स्ट में प्रकाशित ब्लॉग कॉलम

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