Tuesday, November 25, 2008

तुम्हारी भी एक दुनिया है


मित्र आलोक श्रीवास्तव की एक और कविता...

तुम्हारे पास आकाश था

मेरे पास एक टेकरी

तुम्हारे पास उड़ान थी

मेरे पास

सुनसान में हिलती पत्तियां

तुम जन्मी थीं हँसी के लिए

इस कठोर धरती पर

तुमने रोपीं

कोमल फूलों की बेलें

मैं देखता था

और सोचता था

बहुत पुराने दरख्तों की

एक दुनिया थी charon or

थके परिंदों वाली

शाम थी मेरे पास

कुछ धुनें थीं

मैं चाहता था की तुम उन्हें सुनो

मैं चाहता था की एक पूरी शाम तुम

थके परिंदों का

पेड़ पर लौटना देखो

मैं तुम्हें दिखाना चाहता था

अपने शहर की नदी में

धुंधलती रात दुखों से भरी एक दुनिया

मैं भूल गया था

तुम्हारी भी एक दुनिया है

जिसमे कई और नदियाँ हैं

कई और दरखत

कुछ दूसरे ही रंग

कुछ दूसरे ही स्वर

शायद कुछ दूसरे ही

दुःख भी।


2 comments:

  1. Pratibha ji
    Achchhee kavita! Ek doosare ki dunia ko log samajhane lagen, to aadhee samasyaye khatm ho jayen.

    Vivek Bhatnagar

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  2. कविता के भाव पहचाने से लगे...!सबकी अपनी दुनिया और अपने दुःख हैं... निर्विवाद सत्य है यह!
    सुंदर रचना पढवाने के लिए आभार!

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