Tuesday, November 18, 2008

तेरे ख्याल में


हरे लान में

सुर्ख फूलों की छांव में बैठी हुई

मई तुझे सोचती हूँ

मेरी उंगलियाँ

सब्ज पत्तों को छूती हुई

तेरे हमराह गुजरे हुए मौसमों की महक चुन रही हैं

वो दिलकश महक

जो मेरे होठों पे आके हलकी gulabi हँसी बन गई है

दूर अपने ख्यालों में गम

शाख दर शाख

एक तीतरी खुशनुमा पर समेटे हुए उड़ रही है

मुझे ऐसा महसूस होने लगा है

जैसे मुझको पर मिल गए हों।





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