Thursday, October 23, 2008

सच्चा प्यार

nओबल पुरस्कार विजेता विस्साव शिम्बोर्स्का की कवितायें
मुझे बहुत priy हैं। आज उनकी यह कविता फ़िर से पढ़ी
और इसे पद्धति ही गई...आज के ज़माने में जब प्यार एक पहेली
बन चुका है शिम्बोर्स्का की कविता में अलग सी मासूमियत छलकती है

सच्चा प्यार
क्या वह नॉरमल है...
क्या वह उपयोगी है...
क्या इसमे पर्याप्त गंभीरता है...

भला दुनिया के लिए वे दो व्यक्ति किस काम के हैं
जो अपनी ही दुनिया में खोये हुए हों...
बिना किसी ख़ास वजह के

एक ही जमीन पर आ खड़े हुए हैं ये दोनों
किसी अद्र्याश हाथ ने लाखों-करोड़ों की भीड़ से उठाकर
अगर इन्हें पास-पास रख दिया
तो यह महज एक अँधा इत्तिफाक था...
लेकिन इन्हे भरोसा है की इनके लिए यही नियत था
कोई पूछे की किस पुण्य के फलस्वरूप....
नही नही न कोई पुण्यकोई फल है...

अगर प्यार एक रौशनी है
तो इन्हे ही क्यो मिली
दूसरों को क्यों नहीं चाहे कुदरत की ही सही
क्या यह नैन्सफी नहीं है
बिल्कुल है...

क्या ये सभ्यता के आदर्शों को तहस-नहस नही कर देंगे...
अजी कर ही रहे है...

देखो, किस तरह खुश है दोनों।
कम से कम छिपा ही लें अपनी खुशी को
हो सके तो थोडी दी उदासी ऊढ़ ले
अपने दोस्तों की खातिर ही सही। जरा उनकी बातें तो सुनो
हमारे लिए अपमान और उपहास के सिवा क्या है
और उनकी भाषा॥
कितनी संधिग्ध स्पष्टता है उसमे
और उनके उत्सव, उनकी रस्मे
सुबह से शाम तक फैली हुई उनकी दिनचर्या
सब कुछ एक साजिश है पूरी मानवता के ख़िलाफ़...

हम सोच भी नही सकते की क्या से क्या हो जाए
अगर साडी दुनिया इन्ही की राह पर चल पड़े
तब धर्म और कविता का क्या होगा
क्या याद रहेगा, क्या छूट जाएगा
भला कौन अपनी मर्यादाओं में रहनाचाहेगा

सच्चा प्यार
मैं poochati हूँ क्या यह सचमुच इतना जरूरी है...
व्यावहारिकता और समझदारी तो इसी में है
की ऐसे सवालों पर चुप्पी लगा ली जाए
जैसे ऊंचे तबकों के पाप कर्मों पर खामोश रह जाते हैं हम
प्यार के बिना भी स्वस्थ बच्चे पैदा ही सकते हैं
और फ़िर यह है भी इतना दुर्लभ
की इसके भरोसे रहे
तो ये दुनिया लाखों बरसों में भी आबाद न हो सके

जिन्हें कभी सच्चा प्यार नही मिला
उन्हें कहने दो की
दुनिया में ऐसी कोई छेज़ होती ही नहीं
इस विश्वास के सहारे
कितना आसान हो जाएगा
उनका जीना और मरना....

6 comments:

  1. सचमुच इस कविता की खोज और प्यार की सच्चाई के प्रति आपकी पोस्ट बहुत ही भावः भरी है.
    ---
    keep it up. with lots wishes

    ReplyDelete
  2. हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

    आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

    वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

    डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!

    ReplyDelete
  3. बढिया पोस्टिंग।

    दीपावली की शुभकामनाएँ।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. "होंगी इसी तरह से तै मंजिलें ओज की तमाम
    हाँ यूँ ही मुस्कराए जा, हाँ यूँ ही गुनगुनाये जा।"

    सच कहा, सच्चा कहा.
    हिन्दी चिट्ठाकारी में स्वागत है।

    -हिमांशु (सच्चा शरणम्)

    ReplyDelete
  5. diwali par bhavpuran rachna padne ko mili, aap likhte rahe,ham padte rahe

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब !!!
    प्रतिभा जी आप भी ब्लॉग की दुनिया में आ गयीं !
    मुझे आज ही पता चला ! पहचाना मुझे ??
    ............ जब आप जनसत्ता में थीं, तब मुलाकात हुयी थी !
    खैर ........ बहुत अच्छा लगा यहाँ आपको देखकर !
    आपका हार्दिक स्वागत है बुद्धिजीवियों की महफिल में !

    मैंने पहली बार विस्साव शिम्बोर्स्का की कोई कविता पढ़ी है , जिसका मुझे अब अफ़सोस हो रहा है !
    बहुत ही प्यारी कविता है .......
    कितनी सारगर्भित...एवं भावपूर्ण ..........
    वाकई दिल को छूने वाली पंक्तियाँ हैं -
    "भला दुनिया के लिए वे दो व्यक्ति किस काम के हैं
    जो अपनी ही दुनिया में खोये हुए हों...
    बिना किसी ख़ास वजह के"

    मैंने कई बार पढ़ा इन पंक्तियों को -
    "हम सोच भी नही सकते की क्या से क्या हो जाए
    अगर सारी दुनिया इन्ही की राह पर चल पड़े
    तब धर्म और कविता का क्या होगा"

    और आखिरी पंक्तियों ने तो देर तक ठिठकने व सोचने पर विवश कर दिया -
    जिन्हें कभी सच्चा प्यार नही मिला
    उन्हें कहने दो कि
    दुनिया में ऐसी कोई चीज होती ही नहीं
    इस विश्वास के सहारे
    कितना आसान हो जाएगा
    उनका जीना और मरना....!!!!!

    मैंने डायरी में भी नोट कर लिया ! लंबे समय तक याद रहेगी ये कविता !
    नेक्स्ट ब्लॉग में जो आप द्बारा रचित कविता "लिखती हुयी लड़कियां" पढी ! पता नही क्यूँ मेरे को लग रहा है मै इसे कहीं पढ़ चुका हूँ ! क्या आपने इसे पहले कहीं प्रकाशित करवाया है ? शायद "उत्तर प्रदेश" पत्रिका में ?
    बहरहाल अच्छी है !

    आप ब्लॉग में आना जारी रखिये ! अगले ब्लॉग का इन्तजार रहेगा !

    धनतेरस और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete