एक चुप सी लगी है. इस चुप में सुख है. बड़ी मशक्कत से इस चुप तक पहुंचना हो पाता है. इसे सहेजने के जतन में कई बार घबराहट होती है. कहीं कोई चूक न हो जाए, कहीं इस चुप पर कोई खरोंच न लग जाये. बारिशों के घेरे में सहेजती हूँ इस चुप को, तुम्हारी याद के घेरे में भी.
इस चुप का उदासी से कोई रिश्ता है, जानती हूँ फिर भी जाने क्यों इस दफे नहीं चाहती थी कि इस चुप में कोई उदासी आये. कभी तो यूँ हो कि मैं हूँ, तुम हो और उदासी न हो. ओह, यह तो कुछ ज्यादा की उम्मीद हो गयी शायद. फिर भी कोशिश करती रही. उदासियों को चुप के घेरे में आने से बचाती रही, तेरी यादों को तेरे होने से बचाती रही. लेकिन हूँ तो बुध्धू ही, सो ऐसा हो न सका. उदासी ने चुप की कलाई थाम ही ली.
उदासी में एक सुख है, यह शाश्वत उदासी है जो चुप के घर में रहती है. कुछ अनमनी सिसकियाँ हैं जिन्हें खो दिया था कहीं वो मुस्कुराने लगी हैं. सब कुछ कितना जाना हुआ है. इस उदासी के साथ ढेरों पैदल यात्राएँ करना चाहती हूँ, बहुत सारा रोना चाहती हूँ. नृत्य करना चाहती हूँ. न, तुम्हारा होना नहीं चाहती कि तुम्हारा होना उदासी के इस राग को खंडित करता है.
तुमसे बिछड़ने का सुख है. उदासी का सुख. विलम्बित लय में गूंजती है बारिश की आवाज. यह आवाज मेरी गुम गयी आवाज ही तो है. वो आवाज जिसे मैंने बहुत सारे बोले हुए के पीछे छुपाया था.
मैं तुम्हें तुम्हारे बिना ही चाहती हूँ.
उदासी में एक सुख है, यह शाश्वत उदासी है जो चुप के घर में रहती है. कुछ अनमनी सिसकियाँ हैं जिन्हें खो दिया था कहीं वो मुस्कुराने लगी हैं. सब कुछ कितना जाना हुआ है. इस उदासी के साथ ढेरों पैदल यात्राएँ करना चाहती हूँ, बहुत सारा रोना चाहती हूँ. नृत्य करना चाहती हूँ. न, तुम्हारा होना नहीं चाहती कि तुम्हारा होना उदासी के इस राग को खंडित करता है.
तुमसे बिछड़ने का सुख है. उदासी का सुख. विलम्बित लय में गूंजती है बारिश की आवाज. यह आवाज मेरी गुम गयी आवाज ही तो है. वो आवाज जिसे मैंने बहुत सारे बोले हुए के पीछे छुपाया था.
मैं तुम्हें तुम्हारे बिना ही चाहती हूँ.
बारिश ताबड़तोड़ होने लगी है आजकल। रिमझिम रिमझिम देखे बरसों हो गये। सुन्दर।
ReplyDeleteबारिश के बीच बैठा हूँ और आपका ब्लॉग पढ़ रहा हूँ !
ReplyDeleteबारिश होती रहे दर्शन दरवेश जी
ReplyDelete