Tuesday, April 6, 2010

मगर उससे मुहब्बत है, तो है


वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बग़ावत है तो है

सच को मैंने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया
अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है

कब कहा मैंने कि वो मिल जाये मुझको, मैं उसे
गर न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है

जल गया परवाना तो शम्मा की इसमें क्या ख़ता
रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत है तो है

दोस्त बन कर दुश्मनों- सा वो सताता है मुझे
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है

दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ
दूरियों के बाद भी दोनों में क़ुर्बत
है तो है
- दीप्ति नवल

14 comments:

  1. रचना की तारीफ करनी होगी।

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  2. बहुत अच्छे भई

    दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ
    दूरियों के बाद भी दोनों में क़ुर्बत है तो है-

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  3. बेहतरीन गज़ल ।
    बहुत खूब ।

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  4. दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ
    दूरियों के बाद भी दोनों में क़ुर्बत है तो है


    bahut khub

    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  5. आजकल प्रेम में जान देने वाले युवाओं को आपकी ये कविता एक नई दिशा प्रदान कर पाएगी. वास्तव में बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति

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  6. दीप्ति नवल जी की गजल बढ़िया है!
    आप भी तो कहीं कमेंट करने जाया करो!

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  7. अच्छी प्रस्तुति। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।

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  8. Ek bahot acchi dil ko chou lani wali rachna. akhilesh

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  9. kavi ehtaram islam allahabad ki ghazal agni varsha hai to hai barfbari hai to to hai ki tarj par hai unki book ka naam bhi hai to hai haikoshish behtar hai

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