Sunday, August 14, 2016

आज़ादी लेकिन एक वर्जित शब्द हो गया...-देवयानी भरद्वाज


चौराहे पर तिरंगा बेच रहे बच्चे के हाथ में
झंडा मुस्कराया
बच्चे ने कहा भारत माता की जय
और हाथ से गिरा सिक्का उठाने बीच सड़क की ओर भागा

खाली पड़ी इमारत में
बस्तर के जंगल में
राजमार्ग के पास खेत में
लहुलुहान मिली किशोरी के पिता को
जब डाक्टरों ने कहा
थाने में रपट लिखना फिर आना
अस्पताल की ईमारत पर लहराता झंडा मुस्कराया

सोलह बरस के बाद
इरोम ने अनशन तोडा
आज़ाद भारत की सरकारें
कुछ और मगरूर हुई
राजभवन की दीवार पर गाँधी ने ऐनक सरकाया
झंडे के साथ वे भी मुस्कराए

आंबेडकर के चरणों में
कमल का फूल अर्पित किया गया
झंडा मुस्कराया

बुलडोज़र उठा कर ले जा रहे थे
रंभाती हुई गायों को
किसी को उसके निवाले की लिए पीटा
कोई अपने रोज़गार के लिए पिटा
दारू की बोतल में पानी बेचने वाला
सबके हिस्से का माल ले कर हो गया फरार
लाल किले पर फहराया गया तिरंगा
सबकी सफ़ेद पोशाकों पर
लाल छींटे चमक रहे थे
आसमान में झंडा मुस्करा रहा था

सब तरफ है जश्न-ए-आज़ादी
आज़ादी लेकिन एक वर्जित शब्द हो गया
जनता की आँखों में धूल है

जिनकी आँखों में नहीं धूल
उनके लिए त्रिशूल है
झंडा है कि मुस्करा रहा है...

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