Sunday, January 26, 2014

मानव कौल- उम्मीदों का आसमान


वक़्त कैसा भी हो, मन कितनी भी मनमानियां कर रहा हो, कुछ ठीहे ऐसे होते हैं जहाँ पल भर ठहरना सुकून देता है.… 'मौन में बात' ऐसा ही एक ठिकाना है.

मौन में बात करने वाले मानव जब बोलते हैं तो चीज़ों के अर्थ बदलने लगते हैं. उनकी कहानियां, कवितायेँ, नाटक और अब फ़िल्में भी. वो एक गहरा एब्स्ट्रैक्ट रचते हैं, जो जिंदगी के रंगों से भरपूर होता है. हालाँकि ये मानव ही हैं जो रंगों को उनके खोल से मुक्त कर देते हैं, सुरों को आजाद कर देते हैं. उनकी दुनिया में कुछ कहने के लिए चुप हो जाना होता है, सांस-सांस सुनना होता है मौन, लम्हा लम्हा पलकों में भरनी होती हैं जिंदगी, उम्मीदें, ख्वाब।

जीवन, मृत्यु, प्रेम, रंग, आस पास की दुनिया की उठा पटक सब उनके यहाँ एक ठहराव के साथ दाखिल होती है, गहरा असर छोड़ते हुए. वो चीज़ों पर फौरी प्रतिक्रिया देने वाले लेखक, कलाकार नहीं हैं बल्कि वो तमाम झंझावातों को ज़ज्ब करते हैं. बचपन जिस तरह मानव की दुनिया में जगह पाता है उसमें नयी दुनिया का सपना पलते देखा जा सकता है. उनकी कवितायों पर, कहानियों पर, नाटकों पर, फिल्मों पर, और इन सबसे इतर उनकी डायरी के पन्नों पर ढेर सारी बात होनी चाहिए। ज़रूर होनी चाहिए। लेकिन इस वक़्त जिसका कहा जाना मुझे सबसे ज्यादा ज़रूरी लगता है वो है मानव का खुद से, अपने काम से आसक्त न होना। अपने मैं से मुक्त होना।

मानव का कोरे पन्ने के आगे किसी मासूम बच्चे की तरह बैठ जाना विस्मित भी करता है और उनके व्यक्तित्व के कई पहलू भी खोलता है. अपनी रचनाओं से, सफलताओं से, प्रशंसाओं से वो जिस तरह खुद को विरत रखते हैं वो इस बात की उम्मीद बचा लेता है कि कहीं कोई है जो अपने मैं से आज़ाद है.… आज जब हर कोई अपने अपने मैं को पालने पोसने में, अभिभूत होने में व्यस्त है ये शख्श किसी जंगल, किसी पहाड़ी पर कुछ नया तलाश रहा होता है. उन्हें अपने किये जा चुके काम के बारे में बात करने में खास दिलचस्पी नहीं। वो बेहद रचनात्मक होते हुए भी किसी भी किस्म की रेस से बहुत दूर हैं. उनके मौन के पास मुझे उन तमाम सवालों के जवाब अक्सर मिलते हैं जो ढेर सारे शोर, बतकहियों में नहीं मिलते।

बाद मुद्दत एक रोज उनसे पूछती हूँ उनके न होने का ठिकाना और वो चुपचाप हथेलियों पर एक टुकड़ा ख्वाब का रख जाते हैं.… ख्वाब जिसका नाम है कलर ब्लाइंड। 

उनके बारे में कुछ भी लिखना या कहना असल में लिखना है अपने लिए ही.…शुक्रिया मानव! नाउम्मीदियों से भरी इस दुनिया में उम्मीद को बचाये रखने के लिए.…

कलर ब्लाइंड -  http://vimeo.com/81892333

(इस सप्ताह मानव की रचनाएं जारी.... )

2 comments:

Shuba said...

मानव को आपके आपके माध्यम से ही जान रहे हैं प्रतिभा जी. उनका अपने से 'आज़ाद होना' ज़िन्दगी को बंजारे की तरह जीने के नजदीक है, जिसका ठिकाना वही है जहाँ वह है, सारे ठिकाने रास्ते में तब्दील होते जाते हों जैसे.

प्रवीण पाण्डेय said...

मानव के टैगोर पर लिखी सारी पोस्ट पढ़ी हैं, गहराई पर चकित हूँ।