Tuesday, June 9, 2020

आवारगी सीजन- 2


अभी तो पागलपन की उम्र आई है.अभी तो बहुत सारी शरारतें करनी हैं, अब तो शुरू हुआ है बेफिक्री का सीजन-2. अभी तो गोवा जाकर लोट लगानी है. पेड़ों से डायरेक्ट मुंह लगाकर फल खाने हैं, नदी के ठीक बीच में उतरकर अंजुरी में भर-भर पीना है पानी और मच्छी की आँख की चमक देखनी है कि वो जाने कि मनुष्य के पास आने का अर्थ उसकी पेट की भूख भर नहीं होती, न होता है ड्राइंगरूम के अक्वेरियम में सजना, प्रेम से उसे देखते रहना भी होता है.

अभी तो हमें आवारगी की किताब का नया एडिशन निकालना है. बहुत भूख है जीने की यार और बहुत प्यास है ढेर सारी गलतियाँ करने की. बिना जज किये जाने के खौफ के एक-दूसरे के कन्धों पर गिर जाना है अपनी तमाम भूलों और मासूमियत के साथ.

जब भी तुम्हारा जन्मदिन आता है मुझे लगता है यह बड़ा जरूरी दिन है. ऐसा लगता है हम दोनों एक-दूसरे के लिए आये थे दुनिया में. हा हा हा हा....ऐसे तो प्रेमी व्रेमी लोग बोलते हैं न फिल्म में. लेकिन सच्ची में गरियाने वाली और गरियाकर गले लगाने वाली दोस्ती की कीमत कउनो रमेश बाबू का जानेंगे. नहीं न जान सकेंगे.

इत्ते बरस से देहरादून में मन रहा है तुम्हरा जलमदिन. अबकी बार कोरोना आ गया बीच में. कसम से आग लगे कोरोनवा को. चलो कि अबकी डिस्टेंस मोड ही सही. पार्टी तो होगी ही....फूल भी आयेंगे, गुब्बारे भी सजायेंगे, केक भी खायेंगे और डांस भी होगा....हैपी बड्डे दुष्टू.

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