Sunday, April 5, 2020

मन, मान और इंतजार

तस्वीर- संज्ञा उपाध्याय 
लड़की को नदियों, पर्वतों, जंगलों, समन्दरों से प्यार था. लड़की को पंक्षियों से प्यार था. जुगनू के पीछे भागते हुए जंगल में खो जाना उसे बहुत अच्छा लगता था. जब वो जंगल में गुम हो जाती तो पीले फूलों की कतारें उसे अपनी उँगली धीरे से थमा देतीं और वो उसे थामे-थामे घर लौटती.

रास्ते में उसे चाँद मिलता जिसे वो साथ लिए हुए घर लौटती. फूलों की कतारें घर के दरवाजे पर ठिठक जातीं लेकिन चाँद नहीं ठिठकता. वो उसके साथ चलते-चलते उसकी रसोई की खिड़की में लटक जाता. वो चाय बनाती तो चाँद मुस्कुराता, वो चाय लेकर अपने कमरे में आती तो वो लडकी की कमरे की खिड़की से झाँकने लगता. लड़की चाँद की शरारतों में पीले फूलों की कतारों को, जुगनुओं की शैतानियों को भूल जाती.

चाँद लड़की के इश्क में था. लड़की लड़के के इश्क में थी. लड़की सारी रात चाँद को लड़के के किस्से सुनाती. लड़का जो उस रात भी उससे मिलने आया नहीं था और इसके पहले कि लडकी उदास हो जुगनुओं ने लड़की का ध्यान भटका लिया था. लड़की भागती जरूर फिरी जुगनुओं के पीछे लेकिन ध्यान उसका हटा नहीं था.

लड़का लड़की के इश्क में तो था लेकिन वो इश्क की गरिमा से अनजान था. लड़की उसके इश्क में थी लेकिन अपने मन और मान को थामना भी उसने अब सीख लिया था. लड़के ने लड़की का मन पढ़ना नहीं सीखा था अब तक. वो दिन में कई बार अपने प्यार का इज़हार करता, लड़की को अपने प्यार का यकीन दिलाता लेकिन लडकी के मान को खंडित भी करता. लड़की मन और मान दोनों लेकर लड़के से मिलने जाती थी लड़का सिर्फ लड़की से मिलता था, उसका मन और मान वहीं कोने में ठिठके रहते. लड़की लड़के से मिलकर लौटती तो उसके साथ लौटती एक उदासी भी.

उस रोज लड़की दूधिया झरने की संगीत में खोयी हुई थी, उसका ध्यान चारों ओर बिखरे हरे पर था, उसके सर पर पीले फूलो का छत्र सा मढ़ा हुआ था उसकी आँखें सुख से भीगी हुई थी. किसी का इंतजार इतना सौन्दर्य लेकर भी आ सकता है सोचकर ही लड़की मुग्ध थी. इंतजार का हर लम्हा उसे इबादत में होने जैसा लग रहा था. फिर...लड़का आया. उसने लड़की की आँखें मूँद लीं. अपनी दोनों हथेलियों से लड़की का चेहरा ढांप लिया. लड़की सुख की सिसकी में डूब गयी. लडकी ने आँखें खोलीं तो लड़के ने मुस्कुराकर कहा , 'एक खुश खबर है'. लड़की ने पलकें झपकाकर पूछा, 'क्या'. लड़की ने पूछ तो लिया था लेकिन उसकी इच्छा जवाब जानने की नहीं थी. वो चाहती थी लड़का चुप होकर उसके साथ इस दृश्य का हिस्सा बने. वो दूधिया झरने का पानी पिए, पीले फूलों की झालर में अपने होने को गूंथ दे... इस जीवन में इस लम्हे में होने से ज्यादा खुशखबर क्या होगी भला?
लड़के ने बताया, 'उसका प्रमोशन हो गया है. उसे अब दूसरे शहर जाना होगा.' बाहर का दृश्य लड़के की खुशखबर और लडकी की आँखों से छलके आंसू से टकराकर टूट गया था.

लड़की लड़के से मिलने अब भी जाती है उन्हीं ठिकानों पर जहाँ वो आया करता था. वो अपने इंतजार की टोकरी लिए लिए ही वापस लौट आती थी.  वो सारी रात चाँद से उन मुलाकातों के बारे में बतियाती है जो हुई नहीं.  वो हो चुकी मुलाकातों के बारे में कभी कुछ नहीं कहती.

पेड़ों पर नयी कोंपले फूटने के दिन फिर से आये हैं. लड़की का इंतजार अब उन कोंपलों में ढलकर खिल रहा है...

2 comments:

ANHAD NAAD said...

बेकूफ़ कहीं का !

Onkar said...

बहुत बढ़िया