Tuesday, August 13, 2019

मिलूंगी तुमसे तसल्ली से...


मुम्बई से गोवा के लिए हमें अल्सुबह तेजस एक्सप्रेस पकडनी थी. मुम्बई में मैं माधवी के घर रुकी थी. उसके घर पहले भी जा चुकी हूँ. उस मुलाकात और इस मुलाकात के बीच कई बरस बीत चुके थे. उससे मिलकर लगा कि वो और भी खूबसूरत हो गयी है, उसकी खूबसूरती में मातृत्व का नमक जो शामिल हो चुका है. उसके दो प्यारे से बच्चों से मिलना बहुत सुंदर अनुभव था. जरा सी देरी में दोनों बच्चे मासी-मासी की धुन में थे. शरारतें, मस्ती, गप्पें इन सबके बीच नींद कहाँ. ट्रेन पकड़ने के लिए सुबह चार बजे ही निकलना था. लगभग न के बराबर नींद लिए हम गोवा के लिए निकले थे. हालाँकि नींद कहीं थी भी नहीं. यह शायद उत्साह के कारण हुआ होगा..

मेरे साथ अजय गर्ग थे. वो घुमक्कड़ हैं. दुनिया भर घूमते फिरते हैं. सच कहूँ तो घूमने का चस्का अजय जी और माधवी का ही दिया हुआ है. लेकिन मैंने अजय जी के साथ कभी ट्रेवल नहीं किया था. मेरे लिए यह यात्रा कई मायनों में अलग होने वाली थी. पहली राहत की बात तो यही थी कि अजय जी के साथ होने के कारण टिकट, ट्रेवल, स्टे इन सबके इंतजाम के झंझटों से मैं मुक्त थी. यानी मुझे सिर्फ मजे करने थे. लम्बे समय बाद यह राहत मिली थी. वरना तो हर ट्रेवल चाहे परिवार के साथ हो या दोस्तों के साथ या अकेले इन सब जिम्मेदरियों का ठेका मेरा ही होता रहा है. जिम्मेदारियों से राहत भी चाहिए होती है कभी कभी. हम स्टेशन वक़्त पर पहुंचे लेकिन ट्रेन थोड़ी सी लेट हो गयी. स्टेशन की चाय हम पी सकें शायद इसलिए. किसी शहर को महसूस करना हो तो वहां के रेलवे स्टेशन पर थोड़ा वक़्त जरूर बिताना चाहिए. यहाँ जीवन जैसा है, वैसा मिलता है. एक ऊंघती हुई बच्ची अपने पापा के कंधों पर झूल रही थी, गजरा बालों में टांके एक लड़की एक लड़के के कंधे से टिककर ऊंघ रही थी. एक लड़का अभी-अभी बगल में खडे अंकल को चाय देकर गया. इधर से उधर तेजी से जाती ज्यादातर औरतों ने गजरे पहने हुए थे. ये इनके गजरे हमेशा फ्रेश कैसे रहते होंगे मैंने मन में सोचा और गम्भीर मुद्रा बनाकर ट्रेन के एनाउंसमेंट पर ध्यान केन्द्रित किया. थोड़ी ही देर में ट्रेन आ गयी और गोवा का हमारा सफर शुरू हुआ.

अजय जी मुझे खिड़की वाली सीट देकर यह बताकर कि 'रास्ता बेहद खूबसूरत है, देखती जाना' सो गये. उनके लिए यह रास्ता नया नहीं था और रात की नींद उनकी भी अधूरी ही रही थी. जब भी ट्रेन में कुछ खाने को आता, ब्रेकफास्ट या लंच या कुछ और वो जागते, खाते और सो जाते. जितनी देर वो जागते उनकी बातचीत बड़ी मजेदार होतीं. खूब हंसी आती मुझे और लगता कि सफर अच्छा कटने वाला है. मेरी अजय जी से दोस्ती पुरानी है लेकिन यह दोस्ती कम संवादों और इक्का-दुक्का छोटी छोटी मुलाकातों भर की है. उनसे अनौपचारिक मुलाकात का यह पहला मौका था और मुझे नहीं मालूम था कि उनकी उपस्थिति सहजता से भरपूर होगी. हमारी छुटपुट नोक-झोंक शुरू हो चुकी थी जो पूरे सफर में चलती रही.

मुम्बई से गोवा का रास्ता सचमुच बेहद खूबसूरत है. सारे रास्ते मैं चुप होकर खिड़की के बाहर देखती जा रही थी. तेजी से छूटते जा रहे पेड़, सडकें, गाँव, पानी सब मोह रहे थे. ऐसा लग रहा था सब मुझे जानते हैं और मुस्कुराकर हैलो कह रहे हैं, लेकिन मैं तो इन सबसे पहली बार मिल रही थी. ट्रेन का खूबसूरत सफर मुझे सुकून से भर रहा था. सामने लगे स्क्रीन पर देखने के लिए जो फ़िल्में थीं वो भी काफी अच्छी थीं. मन में दुविधा थी कि फिल्म देखूं या दृश्य. मैंने दृश्य ही चुने. एक बैंगनी रंग के बड़े-बड़े पत्तों वाला पेड़ अब तक मेरी स्मृतियों में झूमता है.

करमाली स्टेशन आने वाला था. स्टेशन आने से पहले ही समन्दर दिखने शुरू हो गए थे. ये समन्दर के वो किनारे थे जो शायद शहर से नहीं दिखते. मन उछल-उछल जा रहा था खिड़की से समन्दर देखकर. कुछ ही देर में हम स्टेशन पर थे. स्टेशन ज्यादा बड़ा नहीं है लेकिन साफ़ और सुंदर है. मौसम गर्म था यहाँ. दिसम्बर के महीने में देहरादून से चलते समय जो ढेर सारी जैकेट लदकर आई थीं उनमें से आधी तो मुम्बई में ही पैक हो गयी थीं और बाकी के पैकअप का समय अब था.

मैं आँख भर स्टेशन देख रही थी और अजय जी कम से कम पैसे में मिलने वाला ऑटो ढूँढने में लगे थे. मुझे अजय जी से यह भी सीखना था कि यात्राएँ कैसे इकोनोमिक और अच्छे ढंग से की जाती हैं. आखिर हमें हमारे जैसे ही दो विदेशी दोस्तों के साथ शेयरिंग में ऑटो मिल गया और हम चल पड़े गन्तव्य की ओर.

पणजी बेहद खूबसूरत है. मांडवी नदी के किनारे पर बसे इस सुंदर शहर से बातें करने का जी चाह रहा था. ऑटो होटल की ओर भाग रहा था और पेड़ों से लुकाछिपी खेलते हुए समन्दर मुझे लुभा रहा था. जी तो चाह रहा रहा अभी रुक जाऊं लेकिन खुद को मैंने दिलासा दिया अब तो आ ही गयी हूँ, मिलूंगी तसल्ली से.

जारी...

2 comments:

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

रोचक वृत्तांत। गोवा के ट्रैन के सफर के विषय में मैंने भी सुना है कि वो बेहद खूबसूरत होता है। उम्मीद है जल्द ही मौका मिलेगा। अगली कड़ी का इन्तजार है।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन स्वतंत्रता और रक्षा की पावनता के संयोग में छिपा है सन्देश : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...